मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

104. राह मुकम्मल करनी है (अनुबन्ध/तुकान्त) / Raah mukammal karni hai (Anubandh/Tukaant)

राह मुकम्मल करनी है

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साथी छूटे कि राहें भूलें, ये ज़िन्दगी तो चलनी है
मन हारे कि तन हारे, हर राह मुकम्मल करनी है 

आँखों के सागर में डूबी, प्यासी रूह भटकती अब 
उससे दूर जीएँ हम कैसे, साँस मगर तो भरनी है 

ज़ख़्म दे मरहम भी दे, अजब है उसकी आदत ये 
हँस-हँसकर सहते हैं लेकिन, दिल मेरा तो छलनी है 

ऐ ख़ुदा उसे बख़्श भी दे, है बड़ी हुकूमत ये तेरी 
दरकार तो हमें बुला, ये ज़ीस्त तो यूँ भी कब कटनी है 

वादा तो किया था उसने भी, जन्मों तक साथ निभाने का
तोड़ा वादा इस जीवन का, अब ख़्वाहिश भी मरनी है 

लेंगे साथ जन्म दोबारा, फिर दूर कभी न होंगे हम
इस उम्र की साध सभी हमने, मन में जतन से रखनी है 

तन्हाई से घबराकर, पनाह माँगती 'शब' उससे 
शब की फ़ितरत, हर शब को तन्हा-तन्हा जलनी है 

-जेन्नी शबनम (1. 12. 2009)
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Raah mukammal karni hai

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saathi chhute ki raahen bhoolen, ye zindagi to chalni hai
man haare ki tan haare, har raah mukammal karni hai.

aankhon ke saagar mein doobi, pyaasi rooh bhatakti ab
usase door jiyen hum kaise, saans magar to bharni hai.

zakham de marham bhi de, ajab hai uski aadat 
hans-hanskar sahte hain lekin, dil mera to chhalni hai.

ae khuda use bakhsh bhi de, hai badi hukumat ye teri
darkaar to hamein bulaa, ye zist to yun bhi kab katni hai.

waada to kiya tha usne bhi, janmon tak saath nibhaane ka
toda waada is jiwan ka, ab khwaahish bhi marni hai.

lenge saath janm dobaara, fir door kabhi na honge hum
is umrr ki saadh sabhi humne, man mein jatan se rakhni hai.

tanhaai se ghabrakar, panaah maangti 'shab' usase
shab ki fitrat, har shab ko tanha-tanha jalni hai.

 -Jenny Shabnam (1. 12. 2009)
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2 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

आँखों के सागर में डूबी, प्यासी रूह भटकती मेरी,
उससे दूर जियें हम कैसे, मगर सांस तो भरनी है !
.....kya ehsaas hain

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

रश्मि जी,
कुछ एहसास ऐसे होते जिन्हें बस शब्दों में हीं उतार सकते, ज़िन्दगी में नहीं ढाल सकते| यहाँ आने और मुझे समझने केलिए धन्यवाद!