लोग इश्क करते नहीं हैं
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अँधियारे से कैसे लड़ें, चिराग जलते नहीं हैं
होती जहाँ रोशनी, वो दरवाज़े खुलते नहीं हैं।
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अँधियारे से कैसे लड़ें, चिराग जलते नहीं हैं
होती जहाँ रोशनी, वो दरवाज़े खुलते नहीं हैं।
अपनी बदहाली का, किससे करें हम शिकवा
हमदर्द सामने मगर, क़दम मेरे बढ़ते नहीं हैं।
कल कह दिया उसने, कि अब न आना तुम
मुड़ तो गये मगर, बेदर्द पहर कटते नहीं हैं।
तुम्हारी बेरुख़ी से टूट, दिल ने ये तय किया
न देखेंगे ऐसे ख़्वाब, जो हमसे पलते नहीं हैं।
सीने में दफ़न है ज़ख़्म, जो हमें तुमसे मिला
हश्र देख आशिकी का, लोग इश्क़ करते नहीं हैं।
वज़ह मालूम है तुमको, ख़फ़ा होती नहीं 'शब'
शम-ए-हयात में शहज़ोर जलवे, दिखते नहीं हैं।
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शम-ए-हयात - शमा रुपी जीवन
शहज़ोर - शक्तिशाली
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- जेन्नी शबनम (16. 2. 2010)
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सीने में दफ़न है ज़ख़्म, जो हमें तुमसे मिला
हश्र देख आशिकी का, लोग इश्क़ करते नहीं हैं।
वज़ह मालूम है तुमको, ख़फ़ा होती नहीं 'शब'
शम-ए-हयात में शहज़ोर जलवे, दिखते नहीं हैं।
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शम-ए-हयात - शमा रुपी जीवन
शहज़ोर - शक्तिशाली
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- जेन्नी शबनम (16. 2. 2010)
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Log ishq karte nahin hain
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andhiyaare se kaise ladein, chiraag jalte nahin hain
hoti jahan raushani, wo darwaaze khulte nahin hain.
apni badhaali ka, kisase karen hum shikwa
humdard saamne magar, qadam mere badhte nahin hain.
kal kah diya usne, ki ab na aana tum
mud to gaye magar, bedard pahar katate nahin hain.
tumhaari berukhi se toot, dil ne ye taye kiya
na dekhenge aise khwaab, jo humse palte nahin hain.
seene mein dafan hai zakhm, jo hamein tumse mila
hashra dekh aashiqi ka, log ishq karte nahin hain.
wazah maaloom hai tumko, khafa hoti nahin 'shab'
sham-ae-hayaat mein shahzor jalwe, dikhte nahin hain.
______________________________
sham-ae-hayaat - shama roopi jiwan
shahzor - shaktishaali
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- Jenny Shabnam (16. 2. 2010)
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andhiyaare se kaise ladein, chiraag jalte nahin hain
hoti jahan raushani, wo darwaaze khulte nahin hain.
apni badhaali ka, kisase karen hum shikwa
humdard saamne magar, qadam mere badhte nahin hain.
kal kah diya usne, ki ab na aana tum
mud to gaye magar, bedard pahar katate nahin hain.
tumhaari berukhi se toot, dil ne ye taye kiya
na dekhenge aise khwaab, jo humse palte nahin hain.
seene mein dafan hai zakhm, jo hamein tumse mila
hashra dekh aashiqi ka, log ishq karte nahin hain.
wazah maaloom hai tumko, khafa hoti nahin 'shab'
sham-ae-hayaat mein shahzor jalwe, dikhte nahin hain.
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sham-ae-hayaat - shama roopi jiwan
shahzor - shaktishaali
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- Jenny Shabnam (16. 2. 2010)
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13 टिप्पणियां:
कल कह दिया उसने, कि अब न आना तुम
मुड़ तो गये मगर, बेदर्द पहर कटते नहीं हैं !
nice
ishk karna aasaan nahi, khuda ki ibadat kam log hi kar pate hain
कल कह दिया उसने, कि अब न आना तुम
मुड़ तो गये मगर, बेदर्द पहर कटते नहीं हैं ..
सच है वक़्त कटता नही आसानी से .... इश्क़ आग का वो दरिया है जो तेर के पार जाना है ...
लाजवाब ग़ज़ल ...
अंधियारे से कैसे लड़ें, चिराग जलते नहीं हैं
====
चिरागों को तो जलाना होगा
अन्धेरा जो दूर भागाना होगा
एक बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल पढ़ने को मिली....
आनद आ गया !
आपकी कविताएं दर्द का समंदर हैँ।एक बार पढ़ना शुरु करेँ तो फिर बहुत गहरे उतरना पड़ता है। संवेदना तो नहीँ पर आपकी अपनी है लेकिन पढ़ने के बाद द्रवित करती हैँ। शायद यही होती है। बेहतर लेखन के लिए बधाई !
*ओमपुरोहित'कागद' omkagad.blogspot.com
m-09414380571
Suman ने कहा…
कल कह दिया उसने, कि अब न आना तुम
मुड़ तो गये मगर, बेदर्द पहर कटते नहीं हैं !
nice
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suman ji,
yahan tak aane keliye dhanyawaad aapka.
रश्मि प्रभा... ने कहा…
ishk karna aasaan nahi, khuda ki ibadat kam log hi kar pate hain
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rashmi ji,
ishq khuda se ho ya insaan se bahut mushkil hai ishq mein hona. sarahna keliye shukriya.
दिगम्बर नासवा ने कहा…
कल कह दिया उसने, कि अब न आना तुम
मुड़ तो गये मगर, बेदर्द पहर कटते नहीं हैं ..
सच है वक़्त कटता नही आसानी से .... इश्क़ आग का वो दरिया है जो तेर के पार जाना है ...
लाजवाब ग़ज़ल ...
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digambar sahab,
ishq ka dariya aisa hai jismein tairna nahin bas chhalaang laga dena hota, ab dube ki paar pahunche.
shukriya sarhna keliye.
M VERMA ने कहा…
अंधियारे से कैसे लड़ें, चिराग जलते नहीं हैं
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चिरागों को तो जलाना होगा
अन्धेरा जो दूर भागाना होगा
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M Verma ji,
chiragon ke pet khaali hain kaise jalein, khud mit rahe bemaut abdhera kaise door ho. sarahna keliye bahut shukriya.
अनिल कान्त : ने कहा…
एक बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल पढ़ने को मिली....
आनद आ गया !
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anil ji,
rachna pasand aai, bahut shukriya aapka.
KAGAD ने कहा…
आपकी कविताएं दर्द का समंदर हैँ।एक बार पढ़ना शुरु करेँ तो फिर बहुत गहरे उतरना पड़ता है। संवेदना तो नहीँ पर आपकी अपनी है लेकिन पढ़ने के बाद द्रवित करती हैँ। शायद यही होती है। बेहतर लेखन के लिए बधाई !
*ओमपुरोहित'कागद' omkagad.blogspot.com
m-09414380571
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om ji,
samvedna to meri hai lekin ye dard jamane ka hai, kisi insaan ki daastan nahin balki insaaniyat ki daastan hai, bharat ke kisi ek gaanw ka dard hai. kuchh himmatwar log jo samaj ki pragati keliye mar mitate hain, aur unka hin hashra aisa ki man kaanp jaye, fir desh keliye kaun kya kare.
meri rachna ko aapne mahsoos kiya bahut shukriya.
"सीने में दफ़न है ज़ख्म, जो तुमसे हमें मिला
हश्र देख आशिकी का, लोग इश्क करते नहीं हैं!"
बहुत खूब.
ऐसा भी तो होता है
"सीने में दफ़न है ज़ख्म, जो उनसे मिला
हश्र देख आशिकी का, फिर भी डरते नहीं हैं!"
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