बुधवार, 31 मार्च 2010

131. अब इन्तिज़ार है / ab intizaar hai

अब इन्तिज़ार है

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क्यों है ये संवादहीनता
या है संवेदनहीनता
पर जज़्बात तो अब भी वही
जाने क्यों मुखरित होते नहीं 

बेवक़्त खिंचा आता था मन
बेसबब खिल उठता था पल
हर वक़्त हवाओ में तैरते थे
एहसास जो मन में मचलते थे 

यक़ीन है लौट आएँगे शब्द मेरे
बस थोड़े रूठ गए हैं, लफ़्ज़ मेरे
प्रवासी पखेरू की तरह छोड़ गए हैं
मौसम के आने का अब इन्तिज़ार है

- जेन्नी शबनम (30.3.2010)
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ab intizaar hai

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kyon hai ye samvaadheenta
ya hai samvedanheenta
par jazbaat to ab bhi wahi
jaane kyon mukhrit hote nahin.

bewaqt khincha aata thaa mann
besabab khil uthta tha pal
har waqt hawaaon mein tairte they
ehsaas jo mann mein machalte they.

yaqeen hai, laut aayenge shabd mere
bas thode rooth gaye hain, lafz mere
prawaasi pakheru ki tarah chhod gaye hain
mausam ke aane ka ab intizaar hai.

- Jenny Shabnam (30.3.2010)
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5 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

यकीन है लौट आयेंगे शब्द मेरे
बस थोड़े रूठ गये हैं लफ्ज़ मेरे,
प्रवासी पखेरू की तरह छोड़ गये हैं,
मौसम के आने का मुझे अब इंतज़ार है !

इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ..........रचना....

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

samvadheenta aur samvedanheenta ka sambandh khubsurat hai !!...aapki kavita lajabab!!
hamare blog ke liye nimantran sweekar karen........:)


http://jindagikeerahen.blogspot.com

प्रिया ने कहा…

kahin nahi roothe shabd aapse....gar roothe bhi to kahan jaayenge ....aayenge to kadrdan ke paas hi...aana hi padega....aur dekhiye aap bhi gaye :-)

kshama ने कहा…

यकीन है लौट आयेंगे शब्द मेरे
बस थोड़े रूठ गये हैं लफ्ज़ मेरे,
प्रवासी पखेरू की तरह छोड़ गये हैं,
मौसम के आने का मुझे अब इंतज़ार है
Bahut khoob!