मेरी वफ़ा क्यों बातिल हुई
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न दख़ल दिया, न दाख़िल हुई
फिर मेरी वफ़ा, क्यों बातिल हुई।
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न दख़ल दिया, न दाख़िल हुई
फिर मेरी वफ़ा, क्यों बातिल हुई।
हर ज़ुल्म का इल्ज़ाम मुझपर
मज़लूम भी मैं, और क़ातिल हुई।
मेरी महज़ूनियत, गैरवाज़िब क्यों
जन्नत भला, किसे हासिल हुई।
मेरे ख़्वाबों ने, कहाँ पहुँचाया मुझे
दामगाह में, ज़िन्दगी शामिल हुई।
समंदर में डूबी, पर भींगी नहीं
मज़िरत ही सही, मैं जाहिल हुई।
तख़ल्लुस जब सुना 'शब' का
फ़ज़ीहत फिर, सरे महफ़िल हुई।
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बातिल - निरर्थक
मज़लूम - जिस पर अत्याचार हुआ हो
महज़ूनियत - उदासीनता
दामगाह - फ़रेब की जगह
मज़िरत - विवशता
जाहिल - निपट मूर्ख
तख़ल्लुस - उपनाम
बातिल - निरर्थक
मज़लूम - जिस पर अत्याचार हुआ हो
महज़ूनियत - उदासीनता
दामगाह - फ़रेब की जगह
मज़िरत - विवशता
जाहिल - निपट मूर्ख
तख़ल्लुस - उपनाम
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- जेन्नी शबनम (9. 6. 2010)
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meri wafa kyon baatil hui
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na dakhal diya, na daakhil hui
fir meri wafa, kyon baatil hui.
har zulm ka ilzaam mujhpar
mazloom bhi main, aur qaatil hui.
meri mahzuniyat, gairwaazib kyon
jannat bhala, kise haasil hui.
mere khwaabon ne, kahaan pahunchaaya mujhe
daamgaah mein, zindgi shaamil hui.
samandar mein doobi, par bhingi nahin
mazirat hin sahi, main jaahil hui.
takhallus jab suna 'shab' ka
fazeehat fir, sare mahafil hui.
_____________________________
baatil - nirarthak
mazloom - jis par atyaachaar hua ho
mahzuniyat - udaasinta
damgaah - fareb ki jagah
mazirat - vivashta
jaahil - nipat murkh
takhallus - upnaam
__________________________
- Jenny Shabnam (9. 6. 2010)
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- जेन्नी शबनम (9. 6. 2010)
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meri wafa kyon baatil hui
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na dakhal diya, na daakhil hui
fir meri wafa, kyon baatil hui.
har zulm ka ilzaam mujhpar
mazloom bhi main, aur qaatil hui.
meri mahzuniyat, gairwaazib kyon
jannat bhala, kise haasil hui.
mere khwaabon ne, kahaan pahunchaaya mujhe
daamgaah mein, zindgi shaamil hui.
samandar mein doobi, par bhingi nahin
mazirat hin sahi, main jaahil hui.
takhallus jab suna 'shab' ka
fazeehat fir, sare mahafil hui.
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baatil - nirarthak
mazloom - jis par atyaachaar hua ho
mahzuniyat - udaasinta
damgaah - fareb ki jagah
mazirat - vivashta
jaahil - nipat murkh
takhallus - upnaam
__________________________
- Jenny Shabnam (9. 6. 2010)
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16 टिप्पणियां:
हर ज़ुल्म का इल्ज़ाम मुझपर
मज़लूम भी मैं, और कातिल हुई !
मेरे ख़्वाबों ने, कहाँ पहुँचाया मुझे
दामगाह में, ज़िन्दगी शामिल हुई !
एक सच की बानगी जैसे शेर....
बहुत खूब!
बधाई!
मेरे ख़्वाबों ने, कहाँ पहुँचाया मुझे
दामगाह में, ज़िन्दगी शामिल हुई !
waah jenny ji, bahut hi badhiyaa
wah!! ek umda rachna!!
मेरे ख़्वाबों ने, कहाँ पहुँचाया मुझे
दामगाह में, ज़िन्दगी शामिल हुई !
समंदर में डूबी, पर भींगी नहीं
मज़िरत हीं सही, मैं जाहिल हुई !
आज तो गज़ब ही लिख दिया है...आपकी रचनाएँ बहुत पढ़ीं हैं मैंने...अब ये ब्लॉग भी फौलो कर लेती हूँ .. :):)
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है...कभी मेरे इस ब्लॉग पर भी आइयेगा ..
http://geet7553.blogspot.com/
बेहद रूमानी अहसास और काफ़ी अच्छे से पिरोये हुए..
बहुत सुन्दर रचना है, भावविभोर कर दिया आपने!
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
लाजवाब प्रस्तुति - हार्दिक बधाई
जेन्नी शबनम जी
अच्छी रचना के लिए बधाई !
उर्दू लफ़्ज़ों के अर्थ दे'कर संप्रेषणीयता सुगम करने के लिए आभार !
थोड़ा बहुत बह्र का परिचय भी देने की मेहरबानी कर देतीं तो और अच्छा होता ।
कुल मिला कर एक उम्दा रचना के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं ।
वक़्त निकाल कर शस्वरं पर भी तशरीफ़ लाएं ।
यहां राजस्थानी ज़ुबान में भी उर्दू की बह्रों पर आधारित ग़ज़लें पढ़ने के लिए है ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
Jyotsna Pandey ने कहा…
हर ज़ुल्म का इल्ज़ाम मुझपर
मज़लूम भी मैं, और कातिल हुई !
मेरे ख़्वाबों ने, कहाँ पहुँचाया मुझे
दामगाह में, ज़िन्दगी शामिल हुई !
एक सच की बानगी जैसे शेर....
बहुत खूब!
बधाई!
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jyotsna ji,
mere is lamhon ke safar mein aapka swaagat hai. rachna ke bhaaw ko aapne samjha, bahut khushi hui, dhanyawaad aapka.
रश्मि प्रभा... ने कहा…
मेरे ख़्वाबों ने, कहाँ पहुँचाया मुझे
दामगाह में, ज़िन्दगी शामिल हुई !
waah jenny ji, bahut hi badhiyaa
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rashmi ji,
aapka sneh yun hin milta rahe, kamana rahegi, shukriya.
Mukesh Kumar Sinha ने कहा…
wah!! ek umda rachna!!
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mukesh ji,
sarahna keliye shukriya.
संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…
मेरे ख़्वाबों ने, कहाँ पहुँचाया मुझे
दामगाह में, ज़िन्दगी शामिल हुई !
समंदर में डूबी, पर भींगी नहीं
मज़िरत हीं सही, मैं जाहिल हुई !
आज तो गज़ब ही लिख दिया है...आपकी रचनाएँ बहुत पढ़ीं हैं मैंने...अब ये ब्लॉग भी फौलो कर लेती हूँ .. :):)
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है...कभी मेरे इस ब्लॉग पर भी आइयेगा ..
http://geet7553.blogspot.com/
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sangeeta ji,
meri rachna aapko itni pasand aai, lekhan safal hua. mere rachnaaon ko aapki pratikriya ka sadaiv intzaar rahega. aapke blog ko follow kar li hun. aapki rachnayen pahle bhi padhti aai hun, ab to aasan ho gaya aapke blog tak ka safar.
bahut shukriya sarahna keliye.
संजय भास्कर ने कहा…
बेहद रूमानी अहसास और काफ़ी अच्छे से पिरोये हुए..
June 15, 2010 1:25 PM
संजय भास्कर ने कहा…
बहुत सुन्दर रचना है, भावविभोर कर दिया आपने!
June 15, 2010 1:26 PM
संजय भास्कर ने कहा…
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
June 15, 2010 1:27 PM
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sanjay ji,
meri rachna ki kaamyaabi hai ki aap 3 baar meri rachna ki taarif kar gaye. meri lekhni aapko pasand aai aapka bahut bahut bahut shukriya.
राकेश कौशिक ने कहा…
लाजवाब प्रस्तुति - हार्दिक बधाई
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rakesh ji,
bahut dino baad aapko yahan dekhkar prasannata hui, bahut shukriya aapka.
Rajendra Swarnkar ने कहा…
जेन्नी शबनम जी
अच्छी रचना के लिए बधाई !
उर्दू लफ़्ज़ों के अर्थ दे'कर संप्रेषणीयता सुगम करने के लिए आभार !
थोड़ा बहुत बह्र का परिचय भी देने की मेहरबानी कर देतीं तो और अच्छा होता ।
कुल मिला कर एक उम्दा रचना के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं ।
वक़्त निकाल कर शस्वरं पर भी तशरीफ़ लाएं ।
यहां राजस्थानी ज़ुबान में भी उर्दू की बह्रों पर आधारित ग़ज़लें पढ़ने के लिए है ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
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rajendra ji,
jo bhi kuchh main likhti hun, kabhi ghazal kabhi nazm ban jati hai. bahar ki jaankari mujhe bilkul hin nahin. agar janti hoti to zarur batati. yun ye rachna ghazal ki tarah hai par nazm hin hai, agar aap iske bhaaw dekhein to.
aapke blog par shighra aaungi.
aap yahan aaye aur sarahna kiye, bahut shukriya.
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