बुधवार, 7 जुलाई 2010

153. अल्लाह! ये कैसा सफ़र मैं कर आई / allah! ye kaisa safar main kar aai

अल्लाह! ये कैसा सफ़र मैं कर आई

*******

एक लम्हे की बात थी
और सदियाँ गुज़र गईं
मंज़िल नज़दीक थी
और ज़िन्दगी खो गई

कुछ क़दम थे बढ़े
कुछ क़दम थे घटे
जाने ये कैसा फ़साना
समझ कभी न पाई

रूह भी हुई अब मिट्टी
मिट्टी में सो गई सिसकी
तक़दीर पर इल्ज़ाम
और दी ख़ुदा की दुहाई

ग़र चल सको तो चलो
या लौट जाओ इसी पल
न थी क़ुव्वत साथ मरने की
और जीने की कसम उसने खाई

कह दिया होता उसी पल
बेमक़सद है सदियों का सफ़र
अब हर पहर हुआ ज़ख़्मी
अल्लाह! ये कैसा सफ़र मैं कर आई

- जेन्नी शबनम ( 7. 7. 2010)
__________________________

allah! ye kaisa safar main kar aai

*******

ek lamhe ki baat thi
aur sadiyaan guzar gaeen
manzil nazdik thi
aur zindagi kho gai.

kuchh kadam they badhe
kuchh kadam they ghate
jaane ye kaisa fasaana
samajh kabhi na paai.

rooh bhi hui ab mitti
mitti men so gai siski
takdir par ilzaam
aur dee khuda ki duhaai.

gar chal sako to chalo
ya lout jaao isi pal
na thi kuvat saath marne ki
aur jine ki kasam usne khaai.

kah diya hota usi pal
bemaksad hai sadiyon ka safar
ab har pahar hua zakhmi
allah! ye kaisa safar main kar aai.

- Jenny Shabnam (7. 7. 2010)
________________________

7 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

एक लम्हे की बात थी
और सदियाँ गुज़र गईं,
मंज़िल नज़दीक थी
और ज़िन्दगी खो गई !
Subhanallah,kya gazab likh gayin aap..harek shabd,harek pankti dil me utarti rahi,paiwast hoti rahi...!

Udan Tashtari ने कहा…

गज़ब!! बहुत उम्दा रचना!!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

kya likhti hain, safar jo ho, ye shabdon kee kyaari usmein bhawnaaon ke phool adbhut hain

vandana gupta ने कहा…

उफ़ …………………दर्द ही दर्द उतार दिया है।

बेनामी ने कहा…

दर्दे दास्ताँ - खूब कही

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

फिर भी तुझको चलना होगा...तुझको चलना होगा..वाला गीत याद आ गया..

सुन्दर रचना.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मंगलवार 13 जुलाई को आपकी रचना ..( एक राह और एक प्याली )... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार

http://charchamanch.blogspot.com/