सोमवार, 9 अगस्त 2010

164. काँटा भी एक चुभा देगा / kaanta bhi ek chubha dega

काँटा भी एक चुभा देगा

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हौले से काँटा भी एक चुभा देगा
हाथ में जब कोई फूल थमा देगा,

आह निकले तो हाथ थाम लेगा
फिर धीमे से वो ज़ख़्म चूम लेगा,

कह देगा तेरे वास्ते ही तो गया था
कई दरगाह से दुआ माँग लाया था,

तेरी ही दुआ के फूल तुझे दिया हूँ
चुभ गया काँटा तो क्या दोषी मैं हूँ?

इस छल का नहीं होता कोई जवाब
न बचता फिर करने को कोई सवाल,

ये सिलसिला यूँ ही तो नहीं चलता है
जीवन किसी के साथ बँध जो जाता है

- जेन्नी शबनम (8. 8. 2010)
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kaanta bhi ek chubha dega

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houle se kaanta bhi ek chubha dega
haanth men jab koi phool thamaa dega,

aah nikle to haath thaam lega
phir dhime se vo zakhm choom lega,

kah dega tere vaaste hi to gaya tha
kai dargaah se dua maang laaya tha,

teri hi dua ke phool tujhe diya hun
chubh gaya kaanta to kya doshi main hun?

is chhal ka nahin hota koi jawaab
na bachta phir karne ko koi sawaal,

ye silsila yun hi to nahin chalta hai
jivan kisi ke saath bandh jo jaata hai.

- Jenny Shabnam (8. 8. 2010)
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5 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

इस छल का नहीं होता कोई जवाब
न बचता फिर करने को कोई सवाल,
aur mann rista rahta hai, bahut hi badhiyaa

SATYA ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचना...

बेनामी ने कहा…

सटीक और समसामयिक यही रीति चल पड़ी है आजकल लेकिन
"ये सिलसिला यूँ हीं तो नहीं चलता है
जीवन किसी के साथ बँध जो जाता है!"

यहाँ रुक जाये तो भी गनीमत है .

खोरेन्द्र ने कहा…

हौले से काँटा भी एक चुभा देगा
हाँथ में जब कोई फूल थमा देगा,

vah