तुम्हारी आँखों से देखूँ दुनिया
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चाह थी मेरी
तीन पल में सिमट जाए दूरियाँ
हसरत थी
तुम्हारी आँखों से देखूँ दुनिया।
बाहें थाम, चल पड़ी साथ
जीने को खुशियाँ
बंद सपने मचलने लगे
मानो खिल गई, सपनों की बगिया।
शिलाओं के झुरमुट में
अवशेषों की गवाही
और थाम ली तुमने बहियाँ
जी उठी मैं फिर से सनम
जैसे तुम्हारी साँसों से
जीती हों वादियाँ।
उन अवशेषों में छोड़ आए हम
अपनी भी कुछ निशानियाँ
जहाँ लिखी थी इश्क़ की इबारत
वहाँ हमने भी रची कहानियाँ।
मिलेंगे फिर कभी
ग़र ख़्वाब तुम सजाओ
रहेंगी न फिर मेरी वीरानियाँ
बिन कहे ही तय हुआ
साथ चलेंगे हम
यूँ ही जीएँगे सदियाँ।
- जेन्नी शबनम (18. 12. 2010)
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चाह थी मेरी
तीन पल में सिमट जाए दूरियाँ
हसरत थी
तुम्हारी आँखों से देखूँ दुनिया।
बाहें थाम, चल पड़ी साथ
जीने को खुशियाँ
बंद सपने मचलने लगे
मानो खिल गई, सपनों की बगिया।
शिलाओं के झुरमुट में
अवशेषों की गवाही
और थाम ली तुमने बहियाँ
जी उठी मैं फिर से सनम
जैसे तुम्हारी साँसों से
जीती हों वादियाँ।
उन अवशेषों में छोड़ आए हम
अपनी भी कुछ निशानियाँ
जहाँ लिखी थी इश्क़ की इबारत
वहाँ हमने भी रची कहानियाँ।
मिलेंगे फिर कभी
ग़र ख़्वाब तुम सजाओ
रहेंगी न फिर मेरी वीरानियाँ
बिन कहे ही तय हुआ
साथ चलेंगे हम
यूँ ही जीएँगे सदियाँ।
- जेन्नी शबनम (18. 12. 2010)
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13 टिप्पणियां:
मिलेंगे फिर कभी
ग़र ख्व़ाब तुम सजाओ
रहेंगी न फिर मेरी वीरानियाँ,
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यह आशा मन में हमेशा जगी रहे ...शुक्रिया
बहुत सुंदर कविता काबिल -ए-तारीफ ..आभार
jenny di....
pyar se atirek...:)
ab iss rachna ke liye kya kahun
sabdo ki kami ho rahi hai...!!
उन अवशेषों में
छोड़ आये हम
अपनी भी कुछ निशानियाँ,
जहाँ लिखी थी इश्क की इबारत
वहाँ हमने भी
रची कहानियाँ !kai khwaab aankhon se gujar gaye
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 28 -12 -2010
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
बहुत सुन्दर ...ख्वाब रहने चाहियें ..उम्मीद रहती है
मिलेंगे फिर कभी
ग़र ख्व़ाब तुम सजाओ
रहेंगी न फिर मेरी वीरानियाँ,
सुंदर प्रस्तुति. जेन्नी जी, सुंदर एहसाह के साथ प्यारी सी कविता..
फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
मिलेंगे फिर कभी
ग़र ख्व़ाब तुम सजाओ ..
बहुत ही सुन्दर शब्दों का संगम है इस रचना में ।
सुन्दर रचना!
मिलेंगे फिर कभी
ग़र ख्व़ाब तुम सजाओ
रहेंगी न फिर मेरी वीरानियाँ,
बिन कहे तय हुआ ये
साथ चलेंगे हम
यूँ हीं जियेंगे सदियाँ !
बहुत कोमल अहसास..बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति
वाह! क्या खूब भाव भरे हैं।
बिना कहे जो तय हुआ ...
ख्वाब कहाँ सच ही हुआ ...
सुन्दर भावमय कविता !
दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
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