रविवार, 24 अप्रैल 2011

234. चाँद के होठों की कशिश

चाँद के होठों की कशिश

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चाँद के होठों में जाने क्या कशिश है
सम्मोहित हो जाता है मन
एक जादू-सा असर है
मचल जाता है मन
अँधेरी रात में हौले-हौले
क़दम-क़दम चलते हुए
चाँदनी रात में चुपचाप निहारते हुए
जाने कैसा तूफ़ान आ जाता है
समुद्र में ज्वार भाटा उठता है जैसे
ऐसा ही कुछ-कुछ हो जाता है मन 
कहते हैं चाँद की तासीर ठंडी होती है
फिर कहाँ से आती है इतनी ऊष्णता
जो बदन को धीमे-धीमे
पिघलाती है
फिर भी सुकून पाता है मन
उसकी चाँदनी या चुप्पी
जाने कैसे मन में समाती है
नहीं मालूम ज़िन्दगी मिलती है
या कहीं कुछ भस्म होता है
फिर भी चाँद के संग
घुल जाना चाहता है मन

- जेन्नी शबनम (23. 4. 2011)
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12 टिप्‍पणियां:

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

chaand ki thndak or honton ki grm achchaa flsfaa hai bhtrin mubark ho . akhtark khan akela kota rajsthan

vandana gupta ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति।

कंटक ने कहा…

शायद कहीं कुछ भस्म होता है ,हाँ यही होता है |मन चाहता है घुल जाना ,पर मन का सोचे कहाँ कुछ होता है,चाँद की जुम्बिश को महसूस करें उसके पहले सुबह हो जाती है,दिन के उजालों में चाँद चाँद नजर नहीं आता |वो कहते हैं न "चाँद के माथे पर बचपन के चोट के दाग नजर आते हैं ,रोड़े पत्थर ,गुल्लों से खेला करता था ,बहुत कहा आवारा उल्काओं की संगत ठीक नहीं

udaya veer singh ने कहा…

man ke bhav prakharit huye kavy ban gaye .gatiman rachana . dhnyvad ji

सहज साहित्य ने कहा…

"चाँद के होठों की कशिश"बहुत भावपूर्ण कविता है । शीतलता और उष्णता के इस वैषम्य को आपने बहुत खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है । यह सारा आकर्षण चाँद के होठों का है । एकदम ्नई कल्पना जोड़ दी है आपने जेन्नी शबनम जी !और ये पंक्तियाँ तो जैसे मन-प्राण में ही घुल जाती हैं -
उसकी चांदनी या चुप्पी
जाने कैसे मन में समाती है
नहीं मालूम ज़िन्दगी मिलती है
या कहीं कुछ भस्म होता है
फिर भी चाँद के संग
घुल जाना चाहता है मन|

रश्मि प्रभा... ने कहा…

नहीं मालूम ज़िन्दगी मिलती है
या कहीं कुछ भस्म होता है
फिर भी चाँद के संग
घुल जाना चाहता है मन|
mera bhi

मनोज कुमार ने कहा…

बड़ी ही कोमल अभिव्यक्ति।

Dr Varsha Singh ने कहा…

नहीं मालूम ज़िन्दगी मिलती है
या कहीं कुछ भस्म होता है
फिर भी चाँद के संग
घुल जाना चाहता है मन|


वाह..क्या खूब लिखा है आपने।

***Punam*** ने कहा…

कहते हैं चाँद की तासीर ठंडी होती है
फिर कहाँ से आती है इतनी उष्णता
जो बदन को धीमे धीमे
पिघलाती है
फिर भी सुकून पाता है मन|

चाँद को जो चाहे,जैसे चाहे,जिस रूप में चाहे
देख सकता है...
अपनी दृष्टि...
अपने भाव....
सुन्दर ...!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत गहराई में गोता लगाकर सुन्दर लफ्ज़ चुने हैं आपने... सुन्दर भाव

विभूति" ने कहा…

bhut khubsurat...

SAJAN.AAWARA ने कहा…

CHAND KE SATH GHUL JANA CHAHTA HAI MAN. BAHUT SUNDAR. JAI HIND JAI BHARAT.