बुधवार, 7 सितंबर 2011

281. अनुबन्ध

अनुबन्ध

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एक अनुबन्ध है जन्म और मृत्यु के बीच
कभी साथ-साथ घटित न होना
एक अनुबन्ध है प्रेम और घृणा के बीच
कभी साथ-साथ फलित न होना 
एक अनुबन्ध है स्वप्न और यथार्थ के बीच
कभी सम्पूर्ण सत्य न होना 
एक अनुबन्ध है धरा और गगन के बीच
कभी किसी बिन्दु पर साथ न होना 
एक अनुबन्ध है आकांक्षा और जीवन के बीच
कभी सम्पूर्ण प्राप्य न होना 
एक अनुबन्ध है मेरे मैं और मेरे बीच
कभी एकात्म न होना।

- जेन्नी शबनम (27.1.2009)
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12 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

पूरी रचना में जीवन के सुन्दर सूत्र दिये हैं आपने!
यही तो विडण्बनाएँ है जो हमें सोचने के लिए बाध्य करती हैं!

Suresh Kumar ने कहा…

Bahut hi khoobasaoorat rachanaa...
aabhaar

रश्मि प्रभा... ने कहा…

एक अनुबंध है स्वप्न और यथार्थ के बीच,
कभी सम्पूर्ण सत्य न होना !utkrisht

Unknown ने कहा…

इसी सोच में जिए जा रहे है हम की क्या है हम . शायद हमारी पहचान होना बाकी है अभी . उत्तम काव्य के लिए बधाई

prritiy----sneh ने कहा…

एक अनुबंध है मेरे मैं और मेरे बीच,
कभी एकात्म न होना !'''

waah bahut hi sunder rachna.

shubhkamnayen

संजय भास्‍कर ने कहा…

नए प्रतीक...नए भाव....
बहुत सार्थक और अच्छी सोच ....सुन्दर कविता ...... सुंदर भावाभिव्यक्ति.

बधाई और आभार.

Shabad shabad ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति |

सादर बधाई |

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-631,चर्चाकार --- दिलबाग विर्क

ZEAL ने कहा…

दार्शनिक भी और अध्यात्मिक भी ....उम्दा रचना।

सहज साहित्य ने कहा…

अनुबन्ध कविता में आपने जड़-चेतन जगत के अनुबन्ध और उसके प्रतिफलन का बहुत ही सूक्ष्म विश्लेषण किया है । आपकी यह कविता वैचारिक्दृष्टि और शिल्प की दृष्टि से उत्तम कविता है । आपने शुरू से अन्त तक सारे विरोधोभासों को पूरी तरह पिरो दिया है । इस रचना का फलक बहुत गम्भीर और व्यापक है ।

Sunil Kumar ने कहा…

एक अनुबंध है मेरे मैं और मेरे बीच,
कभी एकात्म न होना !'''
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति, बधाई

Ankit pandey ने कहा…

हकीकत बयान करती यह पोस्ट अच्छी लगी...शुभकामनायें !!