बुधवार, 21 मार्च 2012

333. कवच

कवच

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सच ही कहते हो
हम सभी का अपना-अपना कवच है
जिसका निर्माण हम ख़ुद करते हैं
स्वेच्छा से
जिसके भीतर हम ख़ुद को क़ैद किए होते हैं
आदत से
फिर धीरे-धीरे ये कवच
पहचान बन जाती है
और उस पहचान के साथ
स्वयं का मान-अपमान जुड़ जाता है
शायद इस कवच के बाहर
हमारी दुनिया कुछ भी नही
किसी सुरक्षा के घेरे में
बेहिचक जोख़िम उठाना कठिन नहीं
क्योंकि यह पहचान होती है
एक उद्घोष की तरह-
आओ और मुझे परखो
उसी तराज़ू पर तौलो
जिस पर खरे होने की
तमाम गुंजाइश है। 

- जेन्नी शबनम (21. 3. 2012)
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13 टिप्‍पणियां:

mridula pradhan ने कहा…

wah.....kye sunder likhi hain.

***Punam*** ने कहा…

हम सभी का अपना अपना कवच है
जिसका निर्माण हम ख़ुद करते हैं
स्वेच्छा से....

bahut khoob...!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सच ही कहते हो
हम सभी का अपना अपना कवच है
जिसका निर्माण हम ख़ुद करते हैं
स्वेच्छा से
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......

my resent post


काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

हम सभी का अपना अपना कवच है
जिसका निर्माण हम ख़ुद करते हैं... बिल्कुल सही कहा

vandana gupta ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति।

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह..........
हर चुनौती स्वीकार है...

बहुत बढ़िया...
सादर.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बढ़िया रचना प्रस्तुत की है आपने!

सहज साहित्य ने कहा…

कवच का प्रतीकात्मक प्रयोग आपकी इस कविता के अर्थ को एक अलग ढंग से खोलता है । आपकी हर कविता में एक तूफ़ान -सा भरा होता है। पाठक को भीतर झाँकने की चुनौती देता हुआ । इस कविता की श्लाघा के लिए मुझे तो उपयुक्त शब्द ही नहीं मिल पा रहे हैं । बहुत बधाई जेन्नी शबनम जी !

Vandana Ramasingh ने कहा…

क्योंकि यह पहचान होती है
एक उद्घोष की तरह...
आओ और मुझे परखो
उसी तराज़ू पर तौलो
जिस पर खरे होने की
तमाम गुंजाइश है !

बहुत सही

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

पता नहीं हमारी टिप्पणी कहाँ चली गयी???

आपको और सभी परिवार जनों को चैत्र नवरात्र और नव संवत की अनेकों मंगलकामनाएं.

सादर.
अनु

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......

my resent post


काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.

Pallavi saxena ने कहा…

बेहिचक जोख़िम उठाना
कठिन नही
क्योंकि यह पहचान होती है
एक उद्घोष की तरह...
आओ और मुझे परखो
उसी तराज़ू पर तौलो
जिस पर खरे होने की
तमाम गुंजाइश है !
वाह क्या बात है बहुत ही सुंदर गहन भवाव्यक्ति...नव संवत की हार्दिक शुभकामनायें आपको

Maheshwari kaneri ने कहा…

इस कवच के बाहर
हमारी दुनिया कुछ भी नही
किसी सुरक्षा के घेरे में
बेहिचक जोख़िम उठाना
कठिन नही...गहन भावो से सजी सुन्दर प्रस्तुति...