मंगलवार, 24 जुलाई 2012

357. सात पल

सात पल

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मुट्ठी में वर्षों से बंद
वक़्त का हर एक लम्हा 
कब गिर पड़ा 
कुछ पता न चला 
महज़ सात पल रह गए 
क्योंकि उन पलों को
मैं हथेली की जीवन रेखा में 
नाखून से कुरेद-कुरेदकर 
ठूँस दी थी 
ताकि 
कोई भी बवंडर इसे छीन न सके, 
उन सात पलों में 
पहला पल 
जब मैंने ज़िन्दगी को देखा 
दूसरा
जब ज़िन्दगी ने मुझे अपनाया 
तीसरा 
जब ज़िन्दगी ने दूर चले जाने की ज़िद की
चौथा 
जब ज़िन्दगी मेरे शहर से बिना मिले लौट गई
पाँचवा  
जब ज़िन्दगी के शहर से मुझे लौटना पड़ा 
छठा 
जब ज़िन्दगी से वो सारे समझौते किए जो मुझे मंज़ूर न थे   
सातवाँ 
जब ज़िन्दगी को अलविदा कह दिया, 
अब कोई आठवाँ पल नहीं आएगा 
न रुकेगा मेरी लकीरों में 
न टिक पाएगा मेरी हथेली में 
क्योंकि मैं मुट्ठी बंद करना छोड़ दी हूँ। 

- जेन्नी शबनम (21. 7. 2012)
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19 टिप्‍पणियां:

PRAN SHARMA ने कहा…

SUNDAR BHAVABHIVYAKTI KE LIYE BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .

राजेश सिंह ने कहा…

पल रेत की तरह होते है मुट्ठियों में ज्यादा जोर से कसने पर पोरों के बीच से फिसल कर गम हो जाते है
सुंदर रचना

Anupama Tripathi ने कहा…

गहन और बहुत खूब्सूरत अभिव्यक्ति ...हृदय छू गयी ....कुछ शब्दों मे पूरी यात्रा का विवरण ...अद्भुत ...!!
शुभकामनायें जेन्नी जी ...!!

kshama ने कहा…

Aah!Anginat pal mutthee se fisal jate hain.....pata nahee chalta kab band mutthee khul jatee hai!

Ramakant Singh ने कहा…

ऐसा आप कभी मत सोचिये आप के जाने के बाद आपके सत्कर्म या कहूँ खुबसूरत यादें हम कहाँ भूल पाएंगे .
शायद यही आपका धर्म आपको सदियों तक जिंदा रखे हमारे बीच.

Rakesh Kumar ने कहा…

वाह! जेन्नी जी.
सात पलों की बात आपने
बहुत ही खूबसूरती से पल
भर में ही बता दी.

आपके लम्हों का सफर शानदार है जी.

आभार.

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

waah ....bahut acchi prastuti...

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर जेन्नी जी.....

मगर क्या पता आठवां पल आ जाये पुनर्जन्म के रूप में...

अनु

Dr. sandhya tiwari ने कहा…

bahut kuch kahti rachna .........

Dr. sandhya tiwari ने कहा…

bahut kuch kahti rachna .........

***Punam*** ने कहा…

अब कोई आठवां पल नहीं आएगा
न रुकेगा मेरी लकीरों में
न टिक पायेगा मेरी हथेली में
क्योंकि मैंने मुट्ठी बंद करना छोड़ दिया है !

सही कहा....
मुठ्ठी खुली हो तो कुछ भी नहीं ठहरता...

सहज साहित्य ने कहा…

जेनी शबनम जी की नवीन कल्पना केवल चमत्कृत ही नहीं करती बल्कि झिंझोड़ती भी है । आज के दौर में जब तथाकथित बड़े और स्थापित कवि केवल अपने लिए लिख रहे हैं , खुद ही उस लिखे को समझ रहे हैं; ऐसे दौर में जेन्नी जी का रचनाकर्म आश्व्स्त करता है , हरेक को अपनी कविता के भीतर उसका चेहरा दिखा देता है। इस कविता को पढ़कर जीवान का जो स्वरूप सामने आता है , बस आह ! निकलती है कि सारा जीवन यूँ ही चला गया । इस गुणात्मक कविता के लिए मेरी हार्दिक बधाई !!

Dr. sandhya tiwari ने कहा…

bahut kuch kahti sundar rachna .........kaphi pasand aayi

mridula pradhan ने कहा…

saato pal sunderta se likhi hain.....

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

आज 26/07/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

निर्मला कपिला ने कहा…

मार्मिक अभिव्यक्ति।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जीवन में जब सब कुछ मिल जाय तो चाहत नहीं रहती ... पर समय का क्या पता ... न चाहते हुवे भी झोली में कुछ पल डाल दे ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

हृदयस्पर्शी...... अपने मन के से भाव.....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

अद्भुत नजरिया है... क्या क्या नहीं समेट लिया है... वाह!
सादर