संगतराश
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बोलो संगतराश!
आज कौन-सा रूप तुम्हारे मन में है?
कैसे सवाल उगे हैं तुममें?
अपने जवाब के अनुरूप बुत तराशते हो तुम
और बुत को एक दिल भी थमा देते हो
ताकि जीवन्त दिखे तुम्हें,
पिंजड़े में क़ैद तड़फड़ाते पंछी की तरह
जिसे सबूत देना है कि वह साँसें भर सकता है
लेकिन उसे उड़ने की इजाज़त नहीं, न सोचने की।
संगतराश! तुम बुत में अपनी कल्पनाएँ गढ़ते हो
चेहरे के भाव में अपने भाव मढ़ते हो
अपनी पीड़ा उसमें उड़ेल देते हो
न एक शिरा ज़्यादा, न एक बूँद आँसू कम
तुम बहुत हुनरमन्द शिल्पकार हो,
कला की निशानी, जो रोज़-रोज़ तुम रचते हो
अपने तहख़ाने में सजाकर रख देते हो
जिसके जिस्म की हरकतों में सवाल नहीं उपजते हैं
क्योंकि सवाल दागने वाले बुत तुम्हें पसन्द नहीं,
तमाम बुत, तुम्हारी इच्छा से आकार लेते हैं
तुम्हारी सोच से भंगिमाएँ बदलते हैं
और बस तुम्हारे इशारे को पहचानते हैं।
ओ संगतराश!
कुछ ऐसे बुत भी बनाओ
जो आग उगल सके
पानी को मुट्ठी में समेट ले
हवा का रुख़ मोड़ दे
और ऐसे-ऐसे सवालों के जवाब ढूँढ लाए
जिसे ऋषि-मुनियों ने भी न सोचा हो
न किसी धर्म ग्रन्थ में चर्चा हो,
अपनी क्षमता दिखाओ संगतराश
गढ़ दो, आज की दुनिया के लिए
कुछ इंसानी बुत!
- जेन्नी शबनम (15. 8. 2012)
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25 टिप्पणियां:
वाह....
बेहतरीन रचना......
अनु
BEHTREEN KAVITA HAI .AAPKO BADHAAEE.
ओ संगतराश
कुछ ऐसे बुत भी बनाओ
जो आग उगल सके
पानी को मुट्ठी में समेट ले
हवा का रुख मोड़
गज़ब की कमाना कहूँ या चाह के साथ आपकी बातें दिलोदिमाग को झंझोड़ जाती है कि बस दिमाग कुंद सा हो जाता है
अपनी क्षमता दिखाओ संगतराश
गढ़ दो
आज की दुनिया के लिए
कुछ इंसानी बुत !
बेहतरीन भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
हृदयस्पर्शी नज़्म उत्कृष्ट
--- शायद आपको पसंद आये ---
1. Facebook Comment System को ब्लॉगर पर लगाना
2. चाँद पर मेला लगायें और देखें
3. गुलाबी कोंपलें
्वाह बेहतरीन
तमाम बुत तुम्हारी इच्छा से आकार लेते हैं और तुम्हारी सोच से भंगिमाएँ बदलते हैं और बस तुम्हारे इशारे को पहचानते हैं, ओ संगतराश कुछ ऐसे बुत भी बनाओ जो आग उगल सके ,,,,,,
बेहतरीन प्रस्तुति ,,,,,
RECENT POST...: शहीदों की याद में,,
Ek shabd tarashne waale ki zubaani sangtaraash ki kahaani achchhi lagi
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (19-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
कल 19/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत खूबसूरत विचार
बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक रचना जेनी जी ! आज सचमुच ऐसे बुतों की ज़रूरत है जो सिर्फ बुत न हों और...
जो आग उगल सके
पानी को मुट्ठी में समेट ले
हवा का रुख मोड़ दे
और ऐसे-ऐसे सवालों के जवाब ढूंढ लाये
जिसे ऋषि मुनियों ने भी न सोचा हो
बधाई इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिये !
गढ़ दो आज की दुनिया के कुछ इंसानी बुत !
बहुत आवश्यकता है !
सार्थक अपील !
बहुत सुन्दर रचना .....
बहुत-बहुत बेहतरीन रचना...
:-)
very good thoughts.....
मेरे ब्लॉग
जीवन विचार पर आपका हार्दिक स्वागत है।
संगतराश के आरोपित भावों से आगे के उस सृजन की तलाश इस कविता में है जो भावों को तहखाने से निकाल कर धरती की सच्चाई बना कर रख दे. बहुत खूब कविता है.
बेहतरीन प्रस्तुति ,,,,,
सच में आज के समाज में ऐसे ही बुतों की जरूरत है जिसके दिल में आग हो जो आज के समाज से सवाल करने की हिम्मत रखता हो -----संगतराश के बिम्ब के माध्यम से बहुत सुदर सन्देश दिया है --बढ़िया प्रस्तुति जेन्नी जी
ओ संगतराश कुछ ऐसे बुत भी बनाओ जो आग उगल सके पानी को मुट्ठी में समेट ले हवा का रुख मोड़ दे और ऐसे-ऐसे सवालों के जवाब ढूंढ लाये
बहुत गहन अभिव्यक्ति ...
बहुत ही अच्छी कविता |
वाह! रे संगतराश.
तेरी महिमा है न्यारी.
आप भी न जाने कितने भाव उंडेल
देती है संगतराशी में.
आभार,जेन्नी जी.
संगतराश के बहाने जीवन की करवी सच्चाई का लेखा -जोखा पेश करती कविता । ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगीं-पिंजड़े में कैद
तड़फड़ाते पंछी की तरह
जिसे सबूत देना है
कि वो सांसें भर सकता है
लेकिन उसे उड़ने की इजाज़त नहीं है
और न सोचने की, कविता का अन्तिम अंश में प्रतितोध का स्वर मुखरित हुआ है, जो कविता को और अधिक जीवन्त बन देता है
संगतराश से किया गया यह आह्वान मन को छू जाने वाला है। हार्दिक बधाई।
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डायन का तिलिस्म!
हर अदा पर निसार हो जाएँ...
जिसे सबूत देना है
कि वो सांसें भर सकता है
लेकिन उसे उड़ने की इजाज़त नहीं है
और न सोचने की...
Hridaysparshi rachna.
Aapko padhna waakayi bahut achha lagta hai..
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