रविवार, 23 सितंबर 2012

372. मन छुहारा (7 ताँका)

मन छुहारा (7 ताँका)

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1.
अपनी आत्मा 
रोज़-रोज़ कूटती 
औरत ढ़ेंकी 
पर आस सँजोती
अपनी पूर्णता की !

2.
मन पिंजरा
मुक्ति की आस लगी   
उड़ना चाहे 
जाए तो कहाँ जाए
दुनिया तड़पाए !

3.
न देख पीछे 
सब अपने छूटे
यही रिवाज़
दूरी है कच्ची राह 
मन के नाते पक्के !

4.
ज़िन्दगी सख्त
रोज़-रोज़ घिसती
मगर जीती 
पथरीली राहों पे 
निशान है छोड़ती !

5. 
मन छुहारा
ज़ख़्म सह-सह के
बनता सख्त
रो-रो कर हँसना 
जीवन का दस्तूर !  

6.
मन जुड़ाता 
गर अपना होता 
वो परदेसी 
उमर भले बीते 
पर आस न टूटे ! 

7.
लहलहाते 
खेत औ खलिहान 
हरी धरती 
झूम-झूम है गाती
खुशहाली के गीत !

- जेन्नी शबनम (सितम्बर 10, 2012)

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14 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

सभी तांका बहुत सुन्दर और भावपूर्ण...

Ramakant Singh ने कहा…

आपकी हाइगा मन के रास्ते आत्मा के पिजरे में कैद हो गई . मन मुक्ति के गीत गाते उड़ान भरती कच्ची और पथरीली राहों में पक्के रिश्तों संग खेत खलिहान में झूमते आस के गीतों से मेरे ह्रदय में समां गई .

दिगम्बर नासवा ने कहा…

न देख पीछे
सब अपने छूटे
यही रिवाज़
दूरी है कच्ची राह
मन के नाते पक्के ..

मन के नाते हमेशा पक्के रहते हैं .. उनको कोई चाह नहीं होती ... स्वार्थ नहीं होता ..
सभी तांके बहुत मज़बूत ...

mridula pradhan ने कहा…

ek se badhkar ek.....

Maheshwari kaneri ने कहा…

सभी बहुत सुन्दर हैं..मेरी नई पोस्ट में स्वागत है..

Vandana Ramasingh ने कहा…

ज़िन्दगी सख्त
रोज़-रोज़ घिसती
मगर जीती
पथरीली राहों पे
निशान है छोड़ती !

बिलकुल सही कहा आपने

Madan Mohan Saxena ने कहा…


पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/

Madan Mohan Saxena ने कहा…


पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/

बेनामी ने कहा…

"मन छुहारा"
बहुत खूब

Rachana ने कहा…

मन जुड़ाता
गर अपना होता
वो परदेसी
उमर भले बीते
पर आस न टूटे !
man kab apna huaa hai apna hota to dusron ki pida na sahta
rachana

राजेश सिंह ने कहा…

गहरे भावों से भरी क्षणिकाएं

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

मन छुहारा
जख़्म सह-सह के
बनता सख्त
रो-रो कर हँसना
जीवन का दस्तूर !

जीवन के यथार्थ को अभिव्यक्त करती सुंदर कविताएं।

Bharat Bhushan ने कहा…

बहुत सुंदर लिखा है-
"न देख पीछे
सब अपने छूटे
यही रिवाज़
दूरी है कच्ची राह
मन के नाते पक्के !"

Vinay ने कहा…

very very nice :)

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