कहो ज़िन्दगी
कहो ज़िन्दगी
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आज का क्या संदेश है
किस पथ पे जाना शुभ है
किन राहों पे अशुभ घड़ी का दोष है?
कहो ज़िन्दगी
आज कौन-सा दिन है
सोम है या शनि है
उजालों का राज है या, अँधेरों का मायाजाल है
स्वप्न और दुःस्वप्न का, क्या आपसी क़रार है?
कहो ज़िन्दगी
अभी कौन-सा पहर है, सुबह है या रात है
या कि ढलान पर उतरती
ज़िन्दगी की आख़िरी पदचाप है?
अपनी कसी मुट्ठियों में, टूटते भरोसे की टीस
किससे छुपा रही हो?
मालूम तो है, यह संसार पहुँच से दूर है
फिर क्यों चुप हो, अशांत हो?
अनभिज्ञ नहीं तुम
फिर भी लगता है, जाने क्यों
तुम्हारी ख़ुद से, नहीं कोई पहचान है
कहों ज़िन्दगी
क्या यही हो तुम?
सवाल दागती, सवालों में घिरी
ख़ुद सवाल बन, अपने जवाब तलाशती।
सारे जवाब ज़ाहिर हैं, फिर भी
पूछने का मन है-
कहो ज़िन्दगी तुम्हारा कैसा हाल है?
- जेन्नी शबनम (12. 12. 2012)
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17 टिप्पणियां:
अपना बेहतरीन ब्लॉग हिंदी चिट्ठा संकलक में शामिल करें
सारे जवाब जाहिर हैं फिर भी पूछने का मन है - कहो ज़िंदगी तुम्हारा कैसा हाल है...
बहुत बढिया रचना है बधाई।
: हमको रखवालो ने लूटा,
यही तो ज़िन्दगी है। थोड़ी खट्टी, थोड़ी मीठी, थोड़ी तीखी। कभी हंसी, तो कभी आंसू। एक सस्पेंस मूवी की तरह.. कुछ पता नहीं कि आगे क्या होने वाला है। "द एंड" कैसा होगा। और यही रोमांच इसका मूल तत्व है....
बेहद मार्मिक रचना.शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
zindagi jawaab degi kyaa aise sawaalo kaa ....
कहो ज़िंदगी तुम्हारा कैसा हाल है...
डॉ. जेन्नी शबनम जी
सवाल दागती सवालों में घिरी खुद सवाल बन अपने जवाब तलाशती ज़िंदगी से संवाद करती हुई आपकी रचना प्रभावित करती है…
बहुत खूबसूरत !
…आपकी लेखनी से सुंदर सार्थक रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे , यही कामना है …
शुभकामनाओं सहित…
सादर आमंत्रण,
आपका ब्लॉग 'हिंदी चिट्ठा संकलक' पर नहीं है,
कृपया इसे शामिल कीजिए - http://goo.gl/7mRhq
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा 14/12/12,कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है
बहुत बढिया उम्दा सृजन,,,, बधाई।
recent post हमको रखवालो ने लूटा
saral va achi-**
पूछने का मन है -
कहो ज़िंदगी तुम्हारा कैसा हाल है.....kya baat hai.....
मै अवाक हूँ इतनी खुबसूरत रचना को पढ़कर
ज़िन्दगी से प्रश्न करके आपने उसे निःशब्द कर दिया . ये नदिया की धारा है जिसमे हम बहते चले जाते हैं बस किनारा मिला और चल पड़ो अपनी मंजिल की ओर ..न दर्द न पहचान न अँधेरा बस उजाला ही उजाला नया सन्देश देती
बढ़िया रचना | उम्दा |
कहों ज़िंदगी
क्या यही हो तुम?
सवाल दागती
सवालों में घिरी
खुद सवाल बन
अपने जवाब तलाशती...
सारे जवाब जाहिर हैं
फिर भी
पूछने का मन है -
कहो ज़िंदगी तुम्हारा कैसा हाल है.
आपकी कविता जिंदगी के बारे में स्पंदित कर गई ।मेरे पोस्ट पर आकर मेरा हौसला बढाने के लिए आपका आभार।
aapne jindagee ko leka kaee sawaal karte hue bahut sundar kavita ko prastut kiya hai jo kabile taariph hai.iske liye aap ko main badhai deta hoon.
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति। इसे पुन: एक बार फिर पढा। मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं। धन्यवाद।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।
ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...
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