रविवार, 2 मार्च 2014

444. थम ही जा

थम ही जा

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जैसे-जैसै मन सिकुड़ता गया
जिस्म और ज़रुरतें भी सिकुड़ती गईं
ऐसा नहीं कि कोई चाह नहीं
पर हर चाह को समेटना, रीत जो थी
मन की वीणा तोड़नी ही थी
मूँदी आँखो के सपने
जागती आँखों से मिटाने ही थे
क्या-क्या लेकर आए थे
क्या-क्या गँवाया
सारे हिसाब, मन में चुपचाप होते रहे 
कितने मौसम अपने, कितने आँसू ग़ैरों से
सारे क़िस्से, मन में चुपचाप कहते रहे 
साँसों की लय से
हर रोज़ गुज़ारिश होती- 
थम-थम के चल
बस अब, थम ही जा। 

- जेन्नी शबनम (2. 3. 2014)
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13 टिप्‍पणियां:

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : आ गए मेहमां हमारे

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…


ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ब्लॉग-बुलेटिन - आधा फागुन आधा मार्च मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (03-03-2014) को "बसंत का हुआ आगमन" (चर्चा मंच-1540) में अद्यतन लिंक पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Unknown ने कहा…

आपकी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
--
आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल सोमवार (03-03-2014) को ''एहसास के अनेक रंग'' (चर्चा मंच-1540) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!

Unknown ने कहा…

आपकी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
--
आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल सोमवार (03-03-2014) को ''एहसास के अनेक रंग'' (चर्चा मंच-1540) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!

Aditi Poonam ने कहा…

बहुत सुंदर दर्शन और सार्थक अभिव्यक्ति जेन्नी जी... सिमटना एक प्रक्रिया ही तो है धीमी धीमी सी ....खुद को समेटते जाना ....

Aditi Poonam ने कहा…

बहुत सुंदर दर्शन और सार्थक अभिव्यक्ति जेन्नी जी... सिमटना एक प्रक्रिया ही तो है धीमी धीमी सी ....खुद को समेटते जाना ....

Aditi Poonam ने कहा…

बहुत सुंदर दर्शन और सार्थक अभिव्यक्ति जेन्नी जी... सिमटना एक प्रक्रिया ही तो है धीमी धीमी सी ....खुद को समेटते जाना ....

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

गहरी संंवेदना जगाती यह कविता मन की गहराइयों को छू लेती है !

kavita verma ने कहा…

sundar abhivyakti ...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

उदासी लिए है आज की नज़्म ...
मन के आगे सब विवश हो जाते हैं ...

Unknown ने कहा…

सुन्दर शब्द संयोजन / सुन्दर अभिव्यक्ति

Rachana ने कहा…

सारे क़िस्से
मन में चुपचाप कहते रहे
साँसों की लय से
हर रोज़ गुज़ारिश होती -
थम-थम के चल
बस अब
थम ही जा !
uf kitna dard bhari kavita hai sunder abhivyakti hai
rachana
rachana