तारों का बाग़
*******
2.
3.
4.
1.
तारों के गुच्छे
ज़मीं पे छितराए
मन लुभाए।
ज़मीं पे छितराए
मन लुभाए।
2.
बिजली जली
दीपों का दम टूटा
दीवाली सजी।
3.
तारों का बाग़
धरती पे बिखरा
आज की रात।
धरती पे बिखरा
आज की रात।
4.
दीप जलाओ
प्रेम प्यार की रीत
जी में बसाओ।
प्रेम प्यार की रीत
जी में बसाओ।
5.
प्रदीप्त दीया
मन का अमावस्या
भगा न सका।
6.
रात ने ओढ़ा
आसमाँ का काजल
दीवाली रात।
7.
आतिशबाज़ी
जुगनुओं की रैली
तम बेचारा।
8.
भगा न पाई
दुनिया की दीवाली
मन का तम।
- जेन्नी शबनम ( 20. 10. 2014)
______________________
7 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर हाइकु ॥
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (02-11-2014) को "प्रेम और समर्पण - मोदी के बदले नवाज" (चर्चा मंच-1785) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर हाइकु...
दीपावली के हाइकु सब अंधेरों की व्याख्या करने में सक्षम हैं। संसार में बहुत प्रकार के अँधेरे हैं जिन्हें प्रयास करने पर भी ज्योतिपर्व नष्ट नहीं कर पाते। जेन्नी शबनम जी ने हाइकु को नई दिशा दी है। हर हाइकु में आपका चिन्तन सराहनीय है।
रामेश्वर काम्बोज
Gahre bhaawo ka Sunder haiku ....!!
गहरे ... रंग और दीपों से सजी भावपूर्ण हाइकू ....
अतिसुन्दर लेखन
आभार
मेरे ब्लॉग पर स्वागत है।
एक टिप्पणी भेजें