इंकार है
*******
तूने कहा
मैं चाँद हूँ
और ख़ुद को आफ़ताब कहा।
रफ़्ता-रफ़्ता
मैं जलने लगी
और तू बेमियाद बुझने लगा।
जाने कब कैसे
ग्रहण लगा
और मुझमें दाग़ दिखने लगा।
हौले-हौले ज़िन्दगी बढ़ी
चुपके-चुपके उम्र ढली
और फिर अमावस ठहर गया।
कल का सहर बना क़हर
जब एक नई चाँदनी खिली
और फिर तू कहीं और उगने लगा।
चंद लफ़्ज़ों में मैं हुई बेवतन
दूजी चाँदनी को मिला वतन
और तू आफ़ताब बन जीता रहा।
हाँ, यह मालूम है
तेरे मज़हब में ऐसा ही होता है
पर आज तेरे मज़हब से ही नहीं
तुझसे भी मुझे इंकार है।
न मैं चाँद हूँ
न तू आफ़ताब है
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तूने कहा
मैं चाँद हूँ
और ख़ुद को आफ़ताब कहा।
रफ़्ता-रफ़्ता
मैं जलने लगी
और तू बेमियाद बुझने लगा।
जाने कब कैसे
ग्रहण लगा
और मुझमें दाग़ दिखने लगा।
हौले-हौले ज़िन्दगी बढ़ी
चुपके-चुपके उम्र ढली
और फिर अमावस ठहर गया।
कल का सहर बना क़हर
जब एक नई चाँदनी खिली
और फिर तू कहीं और उगने लगा।
चंद लफ़्ज़ों में मैं हुई बेवतन
दूजी चाँदनी को मिला वतन
और तू आफ़ताब बन जीता रहा।
हाँ, यह मालूम है
तेरे मज़हब में ऐसा ही होता है
पर आज तेरे मज़हब से ही नहीं
तुझसे भी मुझे इंकार है।
न मैं चाँद हूँ
न तू आफ़ताब है
मुझे इन सबसे इंकार है।
- जेन्नी शबनम (20. 11. 2014)
- जेन्नी शबनम (20. 11. 2014)
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8 टिप्पणियां:
Good Morning
बेहद खूबसूरत दमदार अभिव्यक्ति
आपकी लिखी रचना शनिवार 22 नवम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (22-11-2014) को "अभिलाषा-कपड़ा माँगने शायद चला आयेगा" (चर्चा मंच 1805) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लाजवाब अभिव्यक्ति शबनम जी !बधाई |पर दुआ करता हूँ किसीके जिंदगी में ऐसा नहो !
आईना !
अतिसुन्दर रचना
http://rsdiwraya.blogspot.in
भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति।
गहरे क्षोभ से जन्मी रचना ... बहुत ही अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति ....
हौले-हौले ज़िन्दगी बढ़ी
चुपके-चुपके उम्र ढली
और फिर अमावस ठहर गया
जीवन के परिवेश को निकट से निहारती सुंदर कविता।
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