अर्थहीन नहीं...
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जी चाहता है
सारे उगते सवालों को
ढेंकी में कूटकर
सबकी नज़रें बचाकर
पास के पोखर में फ़ेंक आएँ
ताकि सवाल पूर्णतः नष्ट हो जाए
और अपने अर्थहीन होने पर
अपनी ही मुहर लगा दें
या फिर हर एक को
एक-एक गड्ढे में दफ़न कर
उस पर एक-एक पौधा रोप दें
जितने पौधे उतने ही सवाल
और जब मुझे व्यर्थ माना जाए
तब एक-एक पौधे की गिनती कर बता दें
कि मेरे ज़ेहन की उर्वरा शक्ति कितनी थी मैं अर्थहीन नहीं थी!
- जेन्नी शबनम (16. 2. 2016)
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7 टिप्पणियां:
जेन्नी शबनम की कविता हरबार चौंकाती है -अपनी नू्तन संवेदना के कारण, धारदार अभिव्यक्ति के कारण और नवल कल्पना के कारण । ब्लाग और फ़ेसबुक पर जो बहुत कुछ बकवास किखा जा रहा है, उस भीड़ में अलग ताज़गी भरा स्वर्। बधाई बहन ! ये पंक्तियाँ बहुत गहनता लिये हुए हैं-
सारे उगते सवालों को
ढ़ेंकी में कूट कर
सबकी नज़रें बचा कर
पास के पोखर में फ़ेंक आएँ
ताकि सवाल पूर्णतः नष्ट हो जाए
और अपने अर्थहीन होने पर
अपनी ही मुहर लगा दें
Bhavabhivykti ke Kya Kahne ! Badhaaee Jenni Ji .
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 18 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-02-2016 को वैकल्पिक चर्चा मंच पर दिया जाएगा
धन्यवाद
वाह वाह - बहुत खूब
बहुत सुन्दर
उम्दा रचना....
http://yugeshkumar05.blogspot.in/
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