जादुई नगरी
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तुम प्रेम नगर के राजा हो
मैं परी देश की हूँ रानी
पँखों पर तुम्हें बिठाकर मैं
ले जाऊँ सपनो की नगरी।
मन चाहे तोड़ो जितना
फूलों की है मीलों क्यारी
कभी शेष नहीं होती है
फूलों की यह फूलवारी।
झुलाएँ तुम्हें अपना झूला
लता पुष्पों से बने ये झूले
बासंती बयार है इठलाती
धरा-गगन तक जाएँ झूले।
कल-कल बहता मीठा झरना
पाँव पखारे और भींगे तन-मन
मन की प्यास बुझाता है यह
बिना उलाहना रहता है मगन।
जादुई नगरी में फैली शाँति
आओ यहीं बस जाएँ हम
हर चाहत को पूरी कर लें
जीवन को दें विश्राम हम।
उत्सव की छटा है बिखरी
रोम-रोम हुआ है सावन
आओ मुट्ठी में भर लें हम
मौसम-सा यह सुन्दर जीवन।
- जेन्नी शबनम (9. 10. 2019)
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3 टिप्पणियां:
कोमल अहसासात....सुन्दर रचना दी..
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.10.19 को चर्चा मंच पर चर्चा -3484 में दिया जाएगा
धन्यवाद
कल-कल बहता मीठा झरना
पाँव पखारे और भींगे तन मन
मन की प्यास बुझाता है यह
बिना उलाहना रहता है मगन।
जादुई नगरी में फैली शाँति
आओ यहीं बस जाएँ हम
हर चाहत को पूरी कर लें
जीवन को दें विश्राम हम। .... बेहतरीन सृजन
सादर
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