शनिवार, 16 नवंबर 2019

638. धरोहर

धरोहर 

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मेरी धरोहरों में कई ऐसी चीज़ें हैं   
जो मुझे बयान करती हैं, मेरी पहचान करती हैं   
कुछ पुस्तकें, जिनमें लेखकों के हस्ताक्षर   
और मेरे लिए कुछ संदेश हैं   
कुछ यादगार कपड़े   
जिन्हें मैंने किसी ख़ास वक़्त पर लिए या पहने हैं   
कुछ छोटी-छोटी पर्चियाँ   
जिनपर मेरे बच्चों की आड़ी-तिरछी लकीरों में   
मेरा बचपन छुपा हुआ है   
अनलिखे में गुज़रा कल लिखा हुआ है   
कुछ नाते जो क़िस्मत ने छीने   
उनकी यादों का दिल में ठिकाना है   
कुछ अपनों का छल जिससे मेरा सीना छलनी है  
कुछ रिश्ते जो मेरे साथ तब भी होते हैं   
जब हारकर मेरा दम टूटने को होता है   
साँसों से हाथ छूटने को होता है   
कुछ वक़्त जब मैंने जीभरकर जिया है   
बहुत शिद्दत से प्रेम किया है   
यूँ तब भी अँधेरों का राज था, पर ख़ुद पर यक़ीन था  
ये धरोहरें मेरे साथ विदा होंगी जब क़ज़ा आएगी   
मेरे बाद न इनका संरक्षक होगा   
न कोई इनका ख़्वाहिशमंद होगा   
मेरे सिवा किसी को इनसे मुहब्बत नहीं होगी   
मेरी किसी धरोहर की वसीयत नहीं होगी   
मेरी धरोहरें मेरी हैं बस मेरी   
मेरे साथ ही विदा होंगीं।     

- जेन्नी शबनम (16. 11. 2019) 
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2 टिप्‍पणियां:

Sagar ने कहा…

मैंने अभी आपका ब्लॉग पढ़ा है, यह बहुत ही शानदार है।
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Onkar ने कहा…

सुंदर रचना