यूँ ही आना यूँ ही जाना
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अपनी पीर छुपाकर जीना
मीठे कह के आँसू पीना
ये दस्तूर निभाऊँ कैसे
जिस्म है घायल छलनी सीना।
रिश्ते नाते निभ नहीं पाते
करें शिकायत किस की किस से
गली चौबारे खुद में सिमटे
दरख़्त हुए सब टुकड़े-टुकड़े।
मृदु भावों की बली चढ़ाकर
मतलबपरस्त हुई ये दुनिया
खिदमत में मिट जाओ भी गर
कहेगी किस्मत सोई ये दुनिया।
बेगैरत हूँ कहेगी दुनिया
खिदमत न कर खुद को सँवारा
साथ नहीं कोई ब्रम्ह या बाबा
पीर पैगम्बर नहीं सहारा।
पीर पराई कोइ न समझे
मर-मर के छोड़े कोई जीना
ख़त्म करो अब हर ताल्लुक को
मंत्र ये जीवन का दोहराना
यूँ ही अब दुनिया में रहना
यूँ ही अब दुनिया से जाना
ख़त्म करो अब हर ताल्लुक को
मंत्र ये जीवन का दोहराना।
- जेन्नी शबनम (12. 6. 2019)
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