जो देखा जो सुना
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जो देखा-सुना जो जिया-गुना
वह लिखा वह सब लिखा
जो मन ने कहा जो मन में पला
वह लिखा बस वही लिखा
कब कौन सी विधा हुई
किस तराजू पे परखी गई
किस नियम में सजी लेखनी
वो त्रिभुज हुई या वृत्ताकार बनी
समीप रही या समानांतर चली
नहीं मालूम यह क्या हुआ
नहीं मालूम यह क्यों हुआ
बस हुआ और इतना हुआ
जो समझा जो पहचाना
वह लिखा वह सब लिखा।
- जेन्नी शबनम (1. 1. 2020)
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5 टिप्पणियां:
नमस्ते,
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 02 जनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
1630...कुछ ऊबड़-खाबड़ लिखा जाता है सामाजिक विषमताओं के घने अंधेरों पर...
मैंने अभी आपका ब्लॉग पढ़ा है, यह बहुत ही शानदार है।
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"जो मन ने कहा
जो मन में पला
वह लिखा बस वही लिखा
कब कौन सी विधा हुई
किस तराजू पे परखी गई
किस नियम में सजी लेखनी" ... सच में ... मैं भी यही सोचता हूँ कि लेखनी विधा में बंध कर अपना दम तोड़ देती है ... शायद ..
बहुत खूब
बहुत सुन्दर
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