सोमवार, 13 जनवरी 2020

641. प्यार करते रहे (तुकांत)

प्यार करते रहे 

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तुम न समझे फिर भी हम कहते रहे 
प्यार था हम प्यार ही करते रहे।    

छाँव की बातें कहीं, और चल दिए   
ज़िन्दगी की धूप में जलते रहे।    

तुम न आए जब, जहां हँसता रहा   
ज़िन्दगी रूठी औ हम ठिठके रहे।    

चैन दमभर को न आया था कभी   
और तुम कहते हो, हम हँसते रहें।    

बेवफ़ाई तुमसे है जाना, मगर   
हम वफ़ा के गीत ही रचते रहे।    

ढल गई शब, अब सहर होने को है   
सोच के साये से हम लड़ते रहे।     

बारहा तुमने हमें टोका मगर   
अपनी धुन में गीत हम कहते रहे।    

आए तुम आकर भी कब के जा चुके   
हम सफ़र तन्हा मगर करते रहे।    

अबके जो जाओ, तो आना मत सनम   
हम तुम्हारे बिन भी अब रहते रहे।    

सौ जनम ‘शब‘ ने जिए हैं आज तक   
इस जनम में बोझ क्यों कहते रहे।     

('दिल के अरमां आँसुओं में बह गए' के तर्ज़ पर)
- जेन्नी शबनम (13. 1. 2020)   
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4 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

अबके जो जाओ, तो आना मत सनम
हम तुम्हारे बिन भी अब रहते रहे !

सौ जनम ‘शब‘ ने जिए हैं आज तक
इस जनम में बोझ क्यों कहते रहे !
बहुत खूब

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-01-2020) को   "मैं भारत हूँ"   (चर्चा अंक - 3581)    पर भी होगी। 
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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मकर संक्रान्ति की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

Jyoti khare ने कहा…

बहुत सुंदर सृजन

बेनामी ने कहा…

वाह, क्या बात है