ऑक्सीजन
*******
मेरे पुरसुकून जीवन के वास्ते
तुम्हारा सुझाव-
जीवन जीने के लिए प्रेम
प्रेम करने के लिए साँसें
साँसें भरने के लिए ऑक्सीजन
ऑक्सीजन है प्रेम
और वह प्रेम मैं तलाशूँ,
अब बताओ भला, कहाँ से ढूँढूँ?
ऐसा समीकरण कहाँ से जुटाऊँ?
चारों ओर सूखा, वीराना, लिजलिजा
फिर ऑक्सीजन कहाँ पनपे, कैसे नसों में दौड़े
ताकि मैं साँसें लूँ, फिर प्रेम करूँ, फिर जीवन जीऊँ,
सही ग़लत मैं नहीं जानती, पर इतना जानती हूँ
जब-जब मेरी साँसें उखड़ने को होती हैं
एक कप कॉफी या एक ग्लास नींबू-पानी के साथ
ऑक्सीजन की नई खेप तुम मुझमें भर देते हो,
शायद तुम हँसते होगे मुझपर
या यह सोचते होगे कि मैं कितनी मूढ़ हूँ
यह भी सोच सकते हो कि मैं जीना नहीं जानती
लेकिन तुमसे ही सारी उम्मीदें हूँ पालती
पर मैं भी क्या करूँ?
कब तक भटकती फिरुँ?
अनजान राहों पर क़दम डगमगाता है
दूर जाने से मन बहुत घबराता है
किसी तलाश में कहीं दूर जाना नहीं चाहती
नामुमकिन में ख़ुद को खोना नहीं चाहती,
ज़रा-ज़रा-सा कभी-कभी
तुम ही भरते रहो मुझमें जीवन
और बने रहो मेरे ऑक्सीजन।
हाँ, यह भी सच है मैंने तुम्हें माना है
अपना ऑक्सीजन
तुमने नहीं।
- जेन्नी शबनम (2. 2. 2020)
_____________________
6 टिप्पणियां:
सोचा जाए तो प्रेमी और ऑक्सीजन एक हैं।
लाजवाब रचना।
बहोत प्यारी।
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र
"क्या बात"
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 5 फरवरी 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह!लाजवाब रचना !
वाह!!!
बहुत लाजवाब...।
प्रेम और ऑक्सीजन
वाह!!!
अद्भुत तारतम्य
एक टिप्पणी भेजें