शाम
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ऐसी शाम जब थका हारा जीवन अपने अंत पर हो
एक बड़ा चमत्कार हो जाए
ढलता सूरज सब जान जाए
भेज दे अपने रथ से थोड़ा सुकून और हर ले उदासी
भले ही शाम हो पर जीवन की सुबह बन जाए
शाम से रात तक जीवन को अर्थ मिल जाए
काश! ऐसी कोई शाम हो- ढलता सूरज देवता बन जाए।
- जेन्नी शबनम (4. 4. 2020)
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9 टिप्पणियां:
वाह! बहुत सुंदर।
सुन्दर रचना
वाह अनुपम भाव ...
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (06 -04-2020) को 'इन दिनों सपने नहीं आते' (चर्चा अंक-3663) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
आशा और विश्वास से भरी रचना.
काश ! कोई ऐसी शाम हो !
बोझिल शामों से मन उकता गया अब....
सुंदर सृजन।
सादर।
वाह !बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीया
सादर
वाह
बहुत सुंदर सृजन
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