शनिवार, 4 अप्रैल 2020

652. शाम (क्षणिका)

शाम  

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ऐसी शाम जब थका हारा जीवन अपने अंत पर हो  
एक बड़ा चमत्कार हो जाए  
ढलता सूरज सब जान जाए  
भेज दे अपने रथ से थोड़ा सुकून और हर ले उदासी  
भले ही शाम हो पर जीवन की सुबह बन जाए  
शाम से रात तक जीवन को अर्थ मिल जाए  
काश! ऐसी कोई शाम हो- ढलता सूरज देवता बन जाए।

- जेन्नी शबनम (4. 4. 2020)  
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9 टिप्‍पणियां:

विश्वमोहन ने कहा…

वाह! बहुत सुंदर।

Onkar ने कहा…

सुन्दर रचना

सदा ने कहा…

वाह अनुपम भाव ...

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (06 -04-2020) को 'इन दिनों सपने नहीं आते' (चर्चा अंक-3663) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' ने कहा…

आशा और विश्वास से भरी रचना.

Meena sharma ने कहा…

काश ! कोई ऐसी शाम हो !
बोझिल शामों से मन उकता गया अब....

Sweta sinha ने कहा…

सुंदर सृजन।
सादर।

अनीता सैनी ने कहा…

वाह !बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीया
सादर

Jyoti khare ने कहा…

वाह
बहुत सुंदर सृजन