गुरुवार, 13 अगस्त 2020

680. विदा (क्षणिका)

विदा 

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उम्र के बेहिसाब लम्हे, जाने कैसे ख़र्च हो गए    
बदले में मिले ज़िन्दगी के छल   
एकांत के अनेक कठोर पल   
जब न सुनने वाला कोई, न समझाने वाला कोई   
न पास आने वाला, न दूर जाने वाला कोई   
न संगी, न साथी, न रिश्ते, न रिश्तेदारी   
अपनी नीरवता में ख़ुद के साथ   
सिमटे हुए दोनों खुले हाथ   
और यूँ धीरे-धीरे विदा हो रही ज़िन्दगी।   

- जेन्नी शबनम (12. 8. 2020) 
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5 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जिंदगी का एक सत्य ... पर देर से समझ पाता है इंसान ...
पर जब जागे तभी सवेरा ...

Madhulika Patel ने कहा…

उम्र के बेहिसाब लम्हे
जाने कैसे ख़र्च हो गए
बदले में मिले ज़िन्दगी के छल
एकांत के अनेकों कठोर पल
जब न सुनने वाला कोई, न समझाने वाला कोई,,,,,,,,,,बहुत बढ़िया ।आदरणीया शुभकामनाएँ ।

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर = RAJA Kumarendra Singh Sengar ने कहा…

ज़िन्दगी है... आई है तो विदा भी होगी पर कैसे... यह हम पर निर्भर है.