मुट्ठी से फिसल गया
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निःसंदेह बीता कल नहीं लौटेगा
जो बिछड़ गया अब नहीं मिलेगा
फिर भी रोज़-रोज़ बढ़ती है आस
कि शायद मिल जाए वापस
जो जाने-अनजाने बन्द मुट्ठी से फिसल गया।
ख़ुशियों की ख़्वाहिश ही दुःखों की फ़रमाइश है
पर मन समझता नहीं हर पल ख़ुद से उलझता है
हर रोज़ की यही व्यथा
कौन सुने इतनी कथा?
वक़्त को दोष देकर
कोई कैसे ख़ुद को निर्दोष कहेगा?
क्यों दूसरों का लोर-भात एक करेगा?
बहाने क्यों?
कह दो कि बीता कल शातिर खेल था
अवांछित सम्बन्धों का मेल था
जो था सब बेकार था, अविश्वास का भण्डार था
अच्छा हुआ कि बन्द मुट्ठी से फिसल गया।
अमिट दूरियों का अन्तहीन सिलसिला है
उम्मीदों के सफ़र में आसमान-सा सन्नाटा है
पर अतीत के अवसाद में कोई कबतक जिए
कितने-कितने पीर मन में लेके फिरे
वक़्त भी वही उसकी चाल भी वही
बरज़ोरी से उससे छीननी होगी खुशियाँ।
नहीं करना है अब शोक
साथ चलते-चलते, चंद क़दमों का फ़ासला
मीलों में बढ़ गया
रिश्ते-नाते नेह-बन्धन मन की देहरी में ढह गया
देखते-देखते सब, बन्द मुट्ठी से फिसल गया।
- जेन्नी शबनम (31. 12. 2020)
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12 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर
सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 01-01-2021) को "नए साल की शुभकामनाएँ!" (चर्चा अंक- 3933) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद.
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"मीना भारद्वाज"
निःसंदेह, बीता कल नहीं लौटेगा
जो बिछड़ गया, अब नहीं मिलेगा
फिर भी रोज़-रोज़ बढ़ती है आस
कि शायद मिल जाए वापस
जो जाने अनजाने, बंद मुट्ठी से फिसल गया।
बहुत ही मार्मिक सृजन शबनम जी
आपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
सटीक प्रश्नो को व्यक्त करती सार्थक कृति..वर्ष की शुभकामना सहित जिज्ञासा सिंह..।
बहुत सुंदर l
आपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं l
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें शबनम जी
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
वाह, सुंदर रचना..
बहुत खूब 🌹
नववर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएं ⭐🌹🙏🌹⭐
बहुत सुन्दर सृजन - - नूतन वर्ष की असंख्य शुभकामनाएं।
सुन्दर सृजन
समय की साथ जो बीत जाता है वो कहाँ लौटता है ...
नए साल का स्वागत करना ही होता है ...
बहुत शुभकामनायें ...
सुन्दर रचना।
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