सोमवार, 11 जनवरी 2021

708. आकुल (5 माहिया)

आकुल 

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1. 
जीवन जब आकुल है   
राह नहीं दिखती   
मन होता व्याकुल है।   

2. 
हर बाट छलावा है   
चलना ही होगा   
पग-पग पर लावा है।   

3. 
रूठे मेरे सपने   
अब कैसे जीना   
भूले मेरे अपने।   

4. 
जो दूर गए मुझसे   
सुध ना ली मेरी   
क्या पीर कहूँ उनसे।   

5. 
जीवन एक झमेला   
सब कुछ उलझा है   
यह साँसों का खेला।   

- जेन्नी शबनम (10. 1. 2021)
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9 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-01-2021) को "उत्तरायणी-लोहड़ी, देती है सन्देश"  (चर्चा अंक-3945)   पर भी होगी। 
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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हर्षोंल्लास के पर्व लोहड़ी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बहुत सुंदर।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

MANOJ KAYAL ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जीवा के कटु सत्य की हर बेला को लिखा है ...
लजवाब ...

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

क्या कहने ! काबिल-ए-दाद !