आकुल
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1.
जीवन जब आकुल है
राह नहीं दिखती
मन होता व्याकुल है।
2.
हर बाट छलावा है
चलना ही होगा
पग-पग पर लावा है।
3.
रूठे मेरे सपने
अब कैसे जीना
भूले मेरे अपने।
4.
जो दूर गए मुझसे
सुध ना ली मेरी
क्या पीर कहूँ उनसे।
5.
जीवन एक झमेला
सब कुछ उलझा है
यह साँसों का खेला।
- जेन्नी शबनम (10. 1. 2021)
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9 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-01-2021) को "उत्तरायणी-लोहड़ी, देती है सन्देश" (चर्चा अंक-3945) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हर्षोंल्लास के पर्व लोहड़ी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत सुन्दर
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर।
वाह
बहुत सुंदर रचना
जीवा के कटु सत्य की हर बेला को लिखा है ...
लजवाब ...
बहुत बहुत सुन्दर
क्या कहने ! काबिल-ए-दाद !
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