बुधवार, 27 जनवरी 2021

710. भोर की वेला (भोर पर 7 हाइकु)

भोर की वेला 

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1. 
माँ-सी जगाएँ   
सुनहरी किरणें   
भोर की वेला।   

2. 
पाखी की टोली   
भोरे-भोरे निकली   
कर्म निभाने।   

3. 
किरणें बोलीं -   
जाओ, काम पे जाओ   
पानी व पाखी।   

4. 
सूरज जागा   
आँख मिचमिचाता   
जग भी जागा।   

5. 
नया जीवन,   
प्रभात रोज़ देता   
शुभ संदेश।   

6. 
मन सोचता -   
पंछी-सा उड़ पाता   
छूता अंबर।   

7. 
रोज रँगता   
प्रकृति चित्रकार   
अद्भुत छटा।   

- जेन्नी शबनम (24. 1. 2021) 
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12 टिप्‍पणियां:

Onkar ने कहा…

बहुत बढ़िया

Meena Bhardwaj ने कहा…

सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 29-01-2021) को
"जन-जन के उन्नायक"(चर्चा अंक- 3961)
पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.

"मीना भारद्वाज"

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

आपकी मनोहारी पंक्तियाँ भोर का सुन्दर दृश्य बिखेर गई आँखों में

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और सारगर्भित हाइकु।

अनीता सैनी ने कहा…

वाह!बहुत ही सुंदर हाइकु।
सादर

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बहुत ही सुंदर हायकु।

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल ने कहा…

प्रभावशाली लेखन।

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

अति सुंदर । अद्भुत विधा का श्रेष्ठ उपयोग किया है आपने ।

MANOJ KAYAL ने कहा…

बहुत ही सुंदर सृजन।

Sarita Sail ने कहा…

बढ़िया सृजन

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कमाल के हाइकू हैं सभी ...
सुबह की किरणों भोर के आगमन से जुड़े ... भावपूर्ण हाइकू ...

Manisha Goswami ने कहा…

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