शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

753. ज़िन्दगी नहीं है (तुकान्त)

ज़िन्दगी नहीं है 

******* 

बहुत कुछ था जो अब नहीं है   
कुछ है पर ज़िन्दगी नहीं है।
   
कश्मकश में उलझकर क्या कहें   
जो कुछ भी था अब नहीं है। 
  
हयात-ए-सफ़र पर चर्चा क्या   
कहने को बचा अब कुछ नहीं है। 
  
फ़िसलते नातों का ये दौर   
ख़तम होता अब क्यों नहीं है। 
  
रह-रहकर पुकारता है मन   
सब है पर अपना कोई नहीं है। 
  
'शब' की बातें कच्ची-पक्की   
ज़िन्दा है पर ज़िन्दगी नहीं है। 

- जेन्नी शबनम (11. 11. 22)
____________________

9 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 13 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-11-22} को "पंख मेरे मत कतरो"(चर्चा अंक 4610) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा

Kamini Sinha ने कहा…

क्षमा चाहती हूँ रविवार (13 -11-22)

मन की वीणा ने कहा…

वाह! क्या बात है जेन्नी जी जिंदगी का फलसफा ही बयां कर दिया आपने।
सुंदर।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

जिन्दगीनामे को बहुत ही सरल शब्दों मव व्यक्त किया है आपने, शबनम दी।

Bharti Das ने कहा…

बेहतरीन रचना

Abhilasha ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना

Onkar ने कहा…

बेहतरीन रचना

Sudha Devrani ने कहा…

शब' की बातें कच्ची-पक्की
ज़िन्दा है पर ज़िन्दगी नहीं है।
वाह!!!
बहुत सटीक एवं सार्थक ।