सागर तीरे
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1.
दम तोड़ती
भटकती लहरें
सागर तीरे।
2.
सफ़ेद रथ
बढ़ता बिना पथ
रेत में गुम।
3.
उमंग-भरी
लहरें मचलतीं
क़हर ढातीं।
4.
लहरें दौड़ी
शिला से टकराई
टूटी बिखरी।
1.
दम तोड़ती
भटकती लहरें
सागर तीरे।
2.
सफ़ेद रथ
बढ़ता बिना पथ
रेत में गुम।
3.
उमंग-भरी
लहरें मचलतीं
क़हर ढातीं।
4.
लहरें दौड़ी
शिला से टकराई
टूटी बिखरी।
5.
नभ या धरा
किसका सीना बिंधा,
बहते आँसू।
6.
पाँव चूमने
लहरें दौड़ी आईं,
मैं सकुचाई।
7.
टकराती हैं
पर हारती नही,
लहरें योद्धा।
8.
बेचैनी बढ़ी
चाँद पूरा जो उगा
सागर नाचा।
9.
कोई न जाना,
अच्छा किया मिटाके
रेत पे नाम।
10.
फुफकारतीं
पर काटती नहीं
लहरें नाग।
नभ या धरा
किसका सीना बिंधा,
बहते आँसू।
6.
पाँव चूमने
लहरें दौड़ी आईं,
मैं सकुचाई।
7.
टकराती हैं
पर हारती नही,
लहरें योद्धा।
8.
बेचैनी बढ़ी
चाँद पूरा जो उगा
सागर नाचा।
9.
कोई न जाना,
अच्छा किया मिटाके
रेत पे नाम।
10.
फुफकारतीं
पर काटती नहीं
लहरें नाग।
11.
दिन व रात
सागर जागता है,
अनिद्रा रोगी।
12.
डराता नित्य
दहाड़ता दौड़ता
सागर दैत्य।
13.
बड़ा लुभातीं,
लहरें करतीं ज्यों
अठखेलियाँ।
14.
उतर जाऊँ-
सागर में खो जाऊँ,
सागर सखा।
15.
बहती धारा
झुमकर पुकारे
बाँहें पसारे।
उतर जाऊँ-
सागर में खो जाऊँ,
सागर सखा।
15.
बहती धारा
झुमकर पुकारे
बाँहें पसारे।
16.
हाहाकारतीं
साहिल से मिलतीं
लहरें भोली।
17.
किसका शाप
क्षणिक न विश्राम
दिन या रात।
साहिल से मिलतीं
लहरें भोली।
17.
किसका शाप
क्षणिक न विश्राम
दिन या रात।
18.
फन उठाके
बेतहाशा दौड़ता
सागर-नाग।
बेतहाशा दौड़ता
सागर-नाग।
19.
बेमक़सद
दौड़ता ही रहता
आवारा पानी।
20.
क्षितिज पर,
बादल व सागर
आलिंगन में।
21.
सोचता होगा
सागर जाने क्या-क्या
कोई न जाने।
22.
सागर रोता
कौन चुप कराता
सगा न सखा।
23.
कभी-कभी तो
घबराता ही होगा
सागर का जी।
24.
पानी का मेला
हर तरफ़ रेला
है मस्तमौला।
25.
जल की माया
धरा व गगन की
समेटे काया।
पानी का मेला
हर तरफ़ रेला
है मस्तमौला।
25.
जल की माया
धरा व गगन की
समेटे काया।
26.
अथाह नीर
आसमाँ ने बहाई
मन की पीर।
आसमाँ ने बहाई
मन की पीर।
27.
मिट जाएँगे
क़दमों के निशान,
यही जीवन।
मिट जाएँगे
क़दमों के निशान,
यही जीवन।
28.
अद्भुत लीला-
दूध-सी हैं लहरें
सागर नीला।
अद्भुत लीला-
दूध-सी हैं लहरें
सागर नीला।
29.
सूरज झाँका-
सागर की आँखों में
रूप सुहाना।
सागर की आँखों में
रूप सुहाना।
30.
सूरज लाल
सागर में उतरा
देखने हाल।
सूरज लाल
सागर में उतरा
देखने हाल।
- जेन्नी शबनम (20. 9. 2014)
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10 टिप्पणियां:
Jenny Ji , Aapke Ek - Ek Haiku NE
Apna Prabaav Chhoda Hai . Bhaavon
Ke Anuroop Bhasha Ka Istemaal Karna Aapko Khoob Aataa Hai .
bahgut sundar arth samete , badhai
सागर और लहरों को मथकर लाजवाब हाइकू निकाले हैं सभी ..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-09-2014) को "जिसकी तारीफ की वो खुदा हो गया" (चर्चा मंच 1744) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर क्षणिकाएं..
आपने कुछ श्ब्दों में ही जाने कितने भाव कहे हैं इन हाइकु के माध्यम से। बहुत सुन्दर प्रस्तुति। "पाँव चूमने
लहरें दौड़ी आई,
मैं सकुचाई।" ये हाइकु बहुत अच्छी लगी।
Well written ma'am!!!
बेमिसाल हाइकू।
bahoot khoob ....
visit here also
anandkriti007.blogspot.com
सुंदर क्षणिकाएं
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