शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

509. अप्रैल फ़ूल (क्षणिका)

अप्रैल फ़ूल   

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आईने के सामने रह गई मैं भौचक खड़ी  
उस पार खड़ा वक़्त ठठाकर हँस पड़ा  
बेहयाई से बोला-  
तू आज ही नहीं बनी फ़ूल   
उम्र के गुज़रे तमाम पलों में  
तुम्हें बनाया है अप्रैल फ़ूल    

- जेन्नी शबनम (1. 4. 2016)  
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3 टिप्‍पणियां:

Onkar ने कहा…

वाह, बहुत खूब

दिगम्बर नासवा ने कहा…

समय तो बनाता ही है पर चेतावनी से कर ... हम ही न सुने उसकी तो अप्रेल फूल तो बनना ही है ...

मधु रानी ने कहा…

जबरदस्त....