बुधवार, 20 जनवरी 2021

709. बात इतनी सी है

बात इतनी सी है 

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चले थे साथ बात इतनी सी है   
जिए पर तन्हा बात इतनी सी है।   

वे मसरूफ़ रहते तो बात न थी   
मग़रूर हुए बात इतनी सी है।   

मुफ़लिसी के दिन थे पर कपट न की   
ग़ैरतमंद हूँ बात इतनी सी है।   

झूठे भ्रम में जीया जीवन मैंने   
कोई न अपना बात इतनी सी है।   

हमदर्द नहीं होता कोई यहाँ   
सब है छलावा बात इतनी सी है।   

ख़ुद से हर ग़म बाँटा ऐ मेरे ख़ुदा   
तुम भी हो ग़ैर बात इतनी सी है।   

सोच समझके अब तुम बोलना ‘शब‘   
जग है पराया बात इतनी सी है।   

- जेन्नी शबनम (20. 1. 2021) 
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12 टिप्‍पणियां:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

वाह

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

उम्दा अशआर।
बेहतरीन ग़ज़ल।।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
धन्यवाद

सधु चन्द्र ने कहा…

वे मसरूफ़ रहते तो बात न थी
मग़रूर हुए बात इतनी सी है।

मुफ़लिसी के दिन थे पर कपट न की
ग़ैरतमंद हूँ बात इतनी सी है।

झूठे भ्रम में जीया जीवन मैंने
कोई न अपना बात इतनी सी है।
क्या बात!

सुंदर प्रस्तुति।
सादर।

Onkar ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर

अनीता सैनी ने कहा…

हमदर्द नहीं होता कोई यहाँ
सब है छलावा बात इतनी सी है।...वाह! बहुत सुंदर दी।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जग तो कभी किसी का ण हुआ ...
सोच समझ के रहना ही ठीक है ... भाव पूर्ण ...

MANOJ KAYAL ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

सोच समझके अब तुम बोलना, जग है पराया बात इतनी सी है । लेकिन यह इतनी-सी बात ही बहुत बड़ी है अगरचे ग़ौर किया जाए । बहुत अच्छी रचना है यह आपकी ।

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर कामयाब गजल