बात इतनी सी है
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चले थे साथ बात इतनी सी है
जिए पर तन्हा बात इतनी सी है।
वे मसरूफ़ रहते तो बात न थी
मग़रूर हुए बात इतनी सी है।
मुफ़लिसी के दिन थे पर कपट न की
ग़ैरतमंद हूँ बात इतनी सी है।
झूठे भ्रम में जीया जीवन मैंने
कोई न अपना बात इतनी सी है।
हमदर्द नहीं होता कोई यहाँ
सब है छलावा बात इतनी सी है।
ख़ुद से हर ग़म बाँटा ऐ मेरे ख़ुदा
तुम भी हो ग़ैर बात इतनी सी है।
सोच समझके अब तुम बोलना ‘शब‘
जग है पराया बात इतनी सी है।
- जेन्नी शबनम (20. 1. 2021)
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12 टिप्पणियां:
वाह
सुन्दर
उम्दा अशआर।
बेहतरीन ग़ज़ल।।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
धन्यवाद
वे मसरूफ़ रहते तो बात न थी
मग़रूर हुए बात इतनी सी है।
मुफ़लिसी के दिन थे पर कपट न की
ग़ैरतमंद हूँ बात इतनी सी है।
झूठे भ्रम में जीया जीवन मैंने
कोई न अपना बात इतनी सी है।
क्या बात!
सुंदर प्रस्तुति।
सादर।
सुंदर प्रस्तुति
बहुत सुंदर
हमदर्द नहीं होता कोई यहाँ
सब है छलावा बात इतनी सी है।...वाह! बहुत सुंदर दी।
जग तो कभी किसी का ण हुआ ...
सोच समझ के रहना ही ठीक है ... भाव पूर्ण ...
बहुत सुंदर रचना
सोच समझके अब तुम बोलना, जग है पराया बात इतनी सी है । लेकिन यह इतनी-सी बात ही बहुत बड़ी है अगरचे ग़ौर किया जाए । बहुत अच्छी रचना है यह आपकी ।
बहुत बहुत सुन्दर कामयाब गजल
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