उम्र कटी अब बीता सफ़र
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बचपन कब बीता बोलो
हँस पड़ा आईना ये कहकर
काले गेसुओं ने निहारा ख़ुद को
चाँदी के तारों से लिपटाया ख़ुद को।
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बचपन कब बीता बोलो
हँस पड़ा आईना ये कहकर
काले गेसुओं ने निहारा ख़ुद को
चाँदी के तारों से लिपटाया ख़ुद को।
चाँदी के तारों ने पूछा
माथे की शिकन से हँसकर
किसका रस्ता अगोरा तुमने?
क्या ज़िन्दगी को हँसकर जीया तुमने?
ज़िन्दगी ने कहा सुनो जी
हँसने की बारी आई थी पलभर
फिर दिन महीना और बीते साल
समय भागता रहा यूँ ही बेलगाम।
समय ने कहा फिर
ज़रा हौले ज़रा तमककर
नहीं हौसला तो फिर छोड़ो जीना
'शब' का नहीं कोई साथी रहेगी तन्हा।
'शब' ने समझाया ख़ुद को
अपने आँसू ख़ुद पोछ फिर हँसकर,
बेरहम तक़दीर ने भटकाया दर-ब-दर
अच्छा है, लम्बी उम्र कटी, अब बीता सफ़र!
- जेन्नी शबनम (16. 11. 2011)
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25 टिप्पणियां:
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ...।
kya baat ..jiwan ke prati chintan bahut achha laga... par Shab ke anshoo to hamare dil par bhi chubhe..chahe kavita he ho ..matlab kavita apne bhavon ke sampreshan me umda rahi... Sadar
poori jindagi ko hi likh dala ...vaah kya baat hai...sashaqt rachna.
आपके पोस्ट पर आना सार्थक सिद्ध हुआ । । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
सुन्दर रचना , बधाई.
समय ने कहा फिर
ज़रा हौले ज़रा तमक कर,
नहीं हौसला तो फिर छोड़ो जीना
'शब' का नहीं कोई साथी रहेगी तन्हा !to hausle ko banaye rakhna hai , samay ko gussa nahi karna hai
बहन जेन्नी जी जीवन सफ़र इसी तरह बीत जाता है॥ आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई ! अब तो यह सफ़र शुरू हुआ है । अनुभवों का सफ़र , सशक्त अभिव्यक्ति का सफ़र । आपकी यह कविता जीवन का , आपके गहन अनुभवों का बहुत प्यार आईना है ।मैं तो जब आपका ब्लाग पढ़ता हूँ कि आपका अनुभव -जगत् निरन्तर निखार पर है , ऊँचाई की ओर अग्रसर है।
बहुत सुन्दर सृजन!
behad sundar avibhyakti....
नज़्म अच्छी लगी।
बचपन कब बीता बोलो
हँस पड़ा आईना ये कहकर,..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
लो फिर जाने कैसे आप तक पहुँच गई????? हा हा हा कम्बोज जी के ब्लॉग पर थी.
अच्छी कविता है. खुद के आंसूं खुद पोछ खुद को समझाया. इसी को जवान मर्दों सा जीना कहते हैं
ईश्वर की लाडली बेटियां हैं हम .अपने उस पिता को शर्मिंदा थोड़े होने देंगे. हा हा हा ऐसिच हूँ मैं भी आप जैसी आपकी इस कविता जैसी.और.......ऐसे लोगों को प्यार करती हूँ.सम्मान देती हूँ.मेरे रोल मोडल है ऐसे लोग और......खुद मैं .अपनी ही.
प्रेरणा देती है यह रचना.कोई सीखे तो कैसे जिया जाता है.सुख दुःख को भी भी साहस के साथ बहादुरी से फेस करना चाहिए.हम अकेले नही जिन्हें तकलीफों का सामना करना पड़ा जीवन मे.
यूँ .......कभी लगा ही नही कि..यही सब दुःख है.इन्हें ही दुःख कहते हैं. अब लगता है जब पलट कर देखते हैं 'अरे! इतने काँटों भरे रास्ते से गुजरे थे हम??? तब तो चुभन भी महसूस नही हुई इन पैरों को.जो अब लहुलुहान-से दीखते हैं. शायद देखना शुरू कर दिया है इसलिए?????हैं न ??? मैं तो उठकर नाचने लग जाती हूँ.इनके दर्द मुझे मेरी साहसी होने का अहसास दिलाते है.गर्व से भर देते हैं हा हा हा ऐसिच हूँ मैं तो
इस खूबसूरत कविता सी.शायद इसीलिए मेरा कवि पिता मुझे प्यारकरता है.मेरा कवि प्रियतम हर पल मेरे संग रहता है.
शब! जानती हो .जब देखा उनकी हथेलियाँ लहुलुहान है और हाथ जख्मी है.तब मालूम हुआ जिन कांटो भरे रास्तों से गुजरी,मेरे उस पिता और महबूब ने अपनी हथेलियाँ बिछा दि थी.मुझे गुमान था मैं हर बार बिना विचलित हुए कितनी आसानी से गुजर जाती हूँ यहाँ से.पर.....ये उनके हाथ थे जिन्होंने किसी कांटे को मेरे पैरों तक आने ही नही दिया.........
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badti umra ka achha vishleshan kiya hai...chaandi ke taar kahne se saphed baalon ki garima barh gai...safar beet chuke aur aage baaki bhi hai...badhai
लो फिर जाने कैसे आप तक पहुँच गई????? हा हा हा कम्बोज जी के ब्लॉग पर थी.
अच्छी कविता है. खुद के आंसूं खुद पोछ खुद को समझाया. इसी को जवान मर्दों सा जीना कहते हैं
ईश्वर की लाडली बेटियां हैं हम .अपने उस पिता को शर्मिंदा थोड़े होने देंगे. हा हा हा ऐसिच हूँ मैं भी आप जैसी आपकी इस कविता जैसी.और.......ऐसे लोगों को प्यार करती हूँ.सम्मान देती हूँ.मेरे रोल मोडल है ऐसे लोग और......खुद मैं .अपनी ही.
प्रेरणा देती है यह रचना.कोई सीखे तो कैसे जिया जाता है.सुख दुःख को भी भी साहस के साथ बहादुरी से फेस करना चाहिए.हम अकेले नही जिन्हें तकलीफों का सामना करना पड़ा जीवन मे.
यूँ .......कभी लगा ही नही कि..यही सब दुःख है.इन्हें ही दुःख कहते हैं. अब लगता है जब पलट कर देखते हैं 'अरे! इतने काँटों भरे रास्ते से गुजरे थे हम??? तब तो चुभन भी महसूस नही हुई इन पैरों को.जो अब लहुलुहान-से दीखते हैं. शायद देखना शुरू कर दिया है इसलिए?????हैं न ??? मैं तो उठकर नाचने लग जाती हूँ.इनके दर्द मुझे मेरी साहसी होने का अहसास दिलाते है.गर्व से भर देते हैं हा हा हा ऐसिच हूँ मैं तो
इस खूबसूरत कविता सी.शायद इसीलिए मेरा कवि पिता मुझे प्यारकरता है.मेरा कवि प्रियतम हर पल मेरे संग रहता है.
शब! जानती हो .जब देखा उनकी हथेलियाँ लहुलुहान है और हाथ जख्मी है.तब मालूम हुआ जिन कांटो भरे रास्तों से गुजरी,मेरे उस पिता और महबूब ने अपनी हथेलियाँ बिछा दि थी.मुझे गुमान था मैं हर बार बिना विचलित हुए कितनी आसानी से गुजर जाती हूँ यहाँ से.पर.....ये उनके हाथ थे जिन्होंने किसी कांटे को मेरे पैरों तक आने ही नही दिया.........
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अगोरा = ??
अच्छी लगी जिंदगी की कविता.
समय तो यूँ ही भागता रहता है .. लम्हों को पकड़ना पड़ता है हंसने ले लिए ... इस निराशा को खुद ही भगाना होता है ...
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-701:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
बढ़िया प्रस्तुति
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नहीं हौसला तो फिर छोड़ो जीना
'शब' का नहीं कोई साथी रहेगी तन्हा !
वाह सुन्दर अभिव्यक्ति...
सादर बधाई
बहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति....
वाह.... बहुत खूब लिखा है आपने!!
अच्छी नज़्म...!
सुन्दर अभिव्यक्ति...!!
आपके पोस्ट पर आकर अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट शिवपूजन सहाय पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद
'शब' ने समझाया ख़ुद को
अपने आँसू ख़ुद पोछ फिर हँसकर,
बेरहम तकदीर ने भटकाया दर ब दर
अच्छा है लम्बी उम्र कटी अब बीता सफ़र !
तकदीर भी तो अपने पूर्व संचित कर्मों
का ही परिणाम है.वर्तमान कर्म ही हमारे
हाथ में हैं.
उम्र कहाँ कटी अभी सफर अभी बीता कहाँ,
जो क्षण भी हाथ में हैं ,वही बना सकते है सुन्दर जहाँ
आपकी भावपूर्ण दार्शनिक प्रस्तुति बहुत
अच्छी प्रेरणादायक लगी,जेन्नी जी.
डाक्टर साहेबा !
अपने अंतर्मन में झाँकने को,
विवश कर दिया आपने !!
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