सोमवार, 16 जनवरी 2017

535. तुम भी न बस कमाल हो

तुम भी न बस कमाल हो  

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धत्त!
तुम भी न बस कमाल हो!  
न सोचते न विचारते  
सीधे-सीधे कह देते  
जो भी मन में आए  
चाहे प्रेम या गुस्सा  
और नाराज़ भी तो बिना बात ही होते हो  
जबकि जानते हो  
मनाना भी तुम्हें ही पड़ेगा  
और ये भी कि  
हमारी ज़िन्दगी का दायरा  
बस तुम तक  
और तुम्हारा बस मुझ तक  
फिर भी अटपटा लगता है  
जब सबके सामने  
तुम कुछ भी कह देते हो  
तुम भी न बस कमाल हो!  

- जेन्नी शबनम (16. 1. 2017)
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9 टिप्‍पणियां:

kuldeep thakur ने कहा…

दिनांक 17/01/2017 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...

sunaina sharma ने कहा…

khoobsoorat....!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत ख़ूब ... नाज़ुक सा मनुहार ...
क्या बात है ...

Unknown ने कहा…

आपने भी कमाल की कविता लिखी हैं..................... बहुत- बहुत बधाई
http://savanxxx.blogspot.in

रश्मि शर्मा ने कहा…

सुन्दर

रश्मि शर्मा ने कहा…

सुन्दर

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.1.17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2582 में दिया जाएगा
धन्यवाद

Malti Mishra ने कहा…

सुंदर भाव

Unknown ने कहा…

सुन्दर भाव।