तुम भी न बस कमाल हो
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धत्त!
तुम भी न बस कमाल हो!
तुम भी न बस कमाल हो!
न सोचते न विचारते
सीधे-सीधे कह देते
जो भी मन में आए
चाहे प्रेम या गुस्सा
और नाराज़ भी तो बिना बात ही होते हो
जबकि जानते हो
मनाना भी तुम्हें ही पड़ेगा
और ये भी कि
हमारी ज़िन्दगी का दायरा
बस तुम तक
और तुम्हारा बस मुझ तक
फिर भी अटपटा लगता है
जब सबके सामने
तुम कुछ भी कह देते हो
तुम भी न बस कमाल हो!
- जेन्नी शबनम (16. 1. 2017)
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9 टिप्पणियां:
दिनांक 17/01/2017 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...
khoobsoorat....!
बहुत ख़ूब ... नाज़ुक सा मनुहार ...
क्या बात है ...
आपने भी कमाल की कविता लिखी हैं..................... बहुत- बहुत बधाई
http://savanxxx.blogspot.in
सुन्दर
सुन्दर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.1.17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2582 में दिया जाएगा
धन्यवाद
सुंदर भाव
सुन्दर भाव।
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