मंगलवार, 20 अगस्त 2019

622. औरत (10 क्षणिका)

औरत 

*******

1.
औरत 
***   

एक चुटकी नमक   
एक चुटकी सिन्दूर   
एक चुटकी ज़हर   
मुझे औरत करते रहे   
ज़िन्दगी भर।   


2. 
विद्रोही औरतें 
***   

यूँ मुस्कुराना ख़ुद से विद्रोह-सा लगता है   
पर समय के साथ चुपचाप   
विद्रोही बन जाती हैं औरतें   
अपने उन सवालों से घिरी हुई   
जिनके जवाब वे जानती हैं   
मगर वक़्त पर देती हैं,   
विद्रोही औरतें।   


3. 
समीकरण 
***   

औरत का समीकरण:   
अनुभव का जोड़   
उम्र का घटाव   
भावना का गुणा-भाग   
अंतत: 
जीवन - शून्य।   


4.
ताना-बाना   
***   

जीवन का ताना-बाना   
उलटा-पुलटा चलता रहा 
समय यूँ ही सधता रहा   
कभी कुछ उलझा, कभी कुछ सुलझा 
कभी कुछ टूटकर गिरता रहा   
समय मुझे समझता रहा।   


5. 
मैना   
***   

महल का एक अदना खिलौना   
सोने का एक पिंजरा   
पिंजरे में रहती थी एक मैना   
वो रूठे या हँसे 
परवाह किसे?   
दाना-पानी मिलता जीभर   
फुर्र-फुर्र उड़कर दिखाती करतब   
इतनी ही है उसकी कहानी   
सब कहते- वह है बड़ी तक़दीरवाली।   


6.
बेशऊर   
***   

छोटी-छोटी डिब्बियों में भरकर   
सीलबन्द कर दिए सारे हुनर   
यूँ पहले भी बेशऊर कहलाती थी   
पर अब संतोष है   
सारा हुनर ओझल है सबसे   
अब उसका अपमान नहीं होता।   


7.
दिठौना   
***   

दिठौना तो हर रोज़ लगाया    
भूले से भी कभी न चूकी   
नज़रें तो झुकी ही रहीं    
औरतपना कभी न बिसरी   
फिर ये काली परछाईं कैसी?   
काला जादू हुआ ये कैसे?   
ओह! मर्द और औरत में   
दिठौने ने फ़र्क़ किया।  


8.
शाइस्ता   
***   

कहाँ से ढूँढ़कर लाऊँ वो शाइस्ता   
जो ख़िदमत करे मगर शिकवा नहीं   
बेशऊरी, बेअदबी तुम्हें पसन्द नहीं   
और अदब में रहकर ज़ुल्म सहना   
इस ज़माने की फितरत नहीं।   

(शाइस्ता - सभ्य / सुसंकृत)   


9.
पिछली रोटी   
***   

पहली रोटी भैया की   
अन्तिम रोटी अम्मा की   
यही हमारी रीत है भैया   
यही मिली इक सीख है भैया   
बहुत पुराना वादा है   
कुल की ये मर्यादा है   
ये बेटी का सत है भैया   
ये औरत का पथ है भैया।   


10.
वापसी   
***   

ख़ुदा जाने क्या हो   
चीज़ो को भूलते-भूलते   
कहीं ख़ुद को न भूला बैठूँ   
यूँ किसी ने मुझे याद रखा भी नहीं   
अपनी याद तो ख़ुद ही रखी अबतक   
गर ख़ुद को भुला दिया, फिर वापसी कैसे?   


- जेन्नी शबनम (20. 8. 2019)
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7 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

सब की सब कमाल हैं और अद्भुत तेवर लिए हुए | बेहतरीन शब्द चयन और संयोजन है आपका

Sudha Devrani ने कहा…

जीवन का समीकरण
अनुभवों का जोड़
उम्र का घटाव
भावनाओं का गुना भाग
अंतत: जीवन शून्य।
वाह!!!
लाजवाब समीकरण है ये....
सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक है...
बहुत ही लाजवाब
वाह!!!

Neeraj Kumar ने कहा…

वाह! जीवन को शब्दों में परिभाषित करती मोहक रचनाएँ !

Nitish Tiwary ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण और सार्थक क्षणिकाएँ।

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

जेन्नी शबनम जी, आपकी दसों क्षणिकाएं नारी-शोषण को अपना पुश्तैनी हक़ समझने वाले पुरुष-प्रधान समाज पर करारे तमाचों की तरह हैं. ऐसे तमाचे खाकर हम सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि हमने क्या इंसाफ़ की देवी की आँखों पर क्या काली पट्टी इसीलिए चढ़ा रक्खी है कि वह हव्वा की बेटियों पर ढाया जाता हुआ ज़ुल्म देखकर गुनाहगार मर्द को सज़ा न दे दे?

प्रियंक वर्मा ने कहा…

सारी पंक्तिया सीधे दिल को छू जाती है |

Onkar ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति