यकीन...
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चाहती हूँ, यकीन कर लूँ
तुम पर, और अपने आप पर,
ख़ुदा की गवाही का भ्रम
और तुमसे बाबस्ता मेरी ज़िन्दगी
दोनों ही तकदीर है ।
हँसूँ या रोऊँ
कैसे समझाऊँ दिल को ?
एक कशमकश-सी है ज़िन्दगी
एक प्रश्नचिह्न-सा है जीवन ।
हर लम्हा, सारे ज़ज्बात, कैदी हैं
ज़ंजीरें टूट गईं
पर आज़ादी कहाँ ?
कैसे यकीन करूँ
खुद पर और तुम पर,
तुम भी सच हो
और ज़िन्दगी भी ।
- जेन्नी शबनम (मार्च 22, 2009)
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चाहती हूँ, यकीन कर लूँ
तुम पर, और अपने आप पर,
ख़ुदा की गवाही का भ्रम
और तुमसे बाबस्ता मेरी ज़िन्दगी
दोनों ही तकदीर है ।
हँसूँ या रोऊँ
कैसे समझाऊँ दिल को ?
एक कशमकश-सी है ज़िन्दगी
एक प्रश्नचिह्न-सा है जीवन ।
हर लम्हा, सारे ज़ज्बात, कैदी हैं
ज़ंजीरें टूट गईं
पर आज़ादी कहाँ ?
कैसे यकीन करूँ
खुद पर और तुम पर,
तुम भी सच हो
और ज़िन्दगी भी ।
- जेन्नी शबनम (मार्च 22, 2009)
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