गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

631. जीवन की गंध (क्षणिका)

जीवन की गंध   

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यहाँ भी कोई नहीं, वहाँ भी कोई नहीं 
नितान्त अकेले तय करना है 
तमाम राहों को पार करना है
पाप-पुण्य, सुख-दुःख   
मन की अवस्था, तन की व्यवस्था 
समझना ही होगा, सँभालना ही होगा   
यह जीवन और जीवन की गंध। 

- जेन्नी शबनम (10. 10. 2019)   
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