गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

564. हाइकु काव्य (हाइकु पर 10 हाइकु) पुस्तक 95, 96

हाइकु काव्य  
 
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1.  
मन के भाव  
छटा जो बिखेरते  
हाइकु होते।  

2.  
चंद अक्षर  
सम्पूर्ण गाथा गहे  
हाइकु प्यारे।  

3.  
वृहत् सौन्दर्य  
मन में घुमड़ता,  
हाइकु जन्मा।  

4.  
हाइकु ज्ञान-  
लघुता में जीवन,  
सम्पूर्ण बने।  

5.  
भारत आया  
जापान में था जन्मा  
हाइकु काव्य।  

6.  
हाइकु आया  
उछलता छौने-सा  
मन में बसा।  

7.  
दिखे रूमानी  
करे न मनमानी  
नन्हा हाइकु।  

8.  
चंद लफ़्ज़ों में  
अभिव्यक्ति संपूर्ण  
हाइकु पूर्ण।  

9.  
मेरे हाइकु  
मुझसे बतियाते  
कथा सुनाते।  

10.  
हाइकु आया  
दुनिया समझाने  
हमको भाया।  

- जेन्नी शबनम (10. 12. 2017)  
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गुरुवार, 16 नवंबर 2017

563. यक़ीन (क्षणिका)

यक़ीन

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मुझे यक़ीन है  
एक दिन बंद दरवाज़ों से निकलेगी 
सुबह की किरणों का आवभगत करेगी 
रात की चाँदनी में नहाएगी, कोई धुन गुनगुनाएगी 
सारे अल्फ़ाज़ को घर में बंद करके 
सपनों की अनुभूतियों से लिपटी 
ज़िन्दगी मुस्कुराती हुई बेपरवाह घूमेगी  
हाँ! मुझे यक़ीन है, ज़िन्दगी फिर से जिएगी। 

- जेन्नी शबनम (16. 11. 2017) 
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मंगलवार, 14 नवंबर 2017

562. फ्लाईओवर

फ्लाईओवर 

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एक उम्र नहीं, एक रिश्ता नहीं  
कई किस्तों में, कई हिस्सों में  
बीत जाता है जीवन  
किसी फ़्लाइओवर के नीचे  
प्लास्टिक के कनात के अंदर  
एक सम्पूर्ण एहसास के साथ। 
गुलाब का गुच्छा
सस्ती किताब
सस्ते खिलौने  
जिनपर उनका हक़ होना था  
बेच रहे पेट की ख़ातिर,  
काग़ज़ और कपड़े के तिरंगे झंडे  
आज बेचते कल कूड़े से उठाते  
मस्त मौला, तरह-तरह के करतब दिखाते  
और भी जाने क्या-क्या है  
जीवन गुजारने का उनका जरिया।  
आज यहाँ कल वहाँ  
पूरी गृहस्थी चलती है  
इस यायावरी में फूल भी खिलते हैं  
वृक्ष वृद्ध भी होते हैं  
जाने कैसे प्रेम पनपते हैं,  
वहीं खाना वहीं थूकना  
बदबू से मतली नहीं  
ग़ज़ब के जीवट, गज़ब का ठहराव,  
जो है उतने में हँसते  
कोई सोग नहीं, कोई बैर नहीं  
जो जीवन उससे संतुष्ट  
और ज़्यादा की चाह नहीं,  
आखिर क्यों?  
न अधिकार चाहिए  
न सुधार चाहिए।   
बस यूँ ही  
पुश्त दर पुश्त  
खंभे की ओट में  
कूड़े के ढेर के पास  
फ़्लाइओवर के नीचे  
देश का भविष्य तय करता है  
जीवन का सफ़र।  

- जेन्नी शबनम (14. 11. 2017)  
(बाल दिवस)
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मंगलवार, 24 अक्तूबर 2017

561. दीयों की पाँत (दिवाली के 10 हाइकु) पुस्तक- 94,95

दीयों की पाँत 

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1.  
तम हरता  
उजियारा फैलाता  
मन का दीया   

2.  
जाग्रत हुई  
रोशनी में नहाई  
दिवाली-रात   

3.  
साँसें बेचैन,  
पटाखों को भगाओ  
दीप जलाओ   

4.  
पशु व पक्षी  
थर-थर काँपते,  
पटाखे यम   

5.  
फिर से आई  
ख़ुशियों की दीवाली  
हर्षित मन   

6.  
दीवाली रात  
दीयों से डरकर  
जा छुपा चाँद   

7.  
अँधेरी रात  
कर रही विलाप,  
दीयों की ताप   

8.  
सूना है घर,  
बैरन ये दीवाली  
मुँह चिढ़ाती   

9.  
चाँद जा छुपा  
सूरज जो गुस्साया  
दीवाली रात   

10.  
झुमती रात  
तारों की बरसात  
दीयों की पाँत   

- जेन्नी शबनम (19. 10. 2017)  
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शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

560. महाशाप

महाशाप  

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किसी ऋषि ने  
जाने किस युग में  
किस रोष में दे दिया होगा
सूरज को महाशाप
नियमित, अनवरत, बेशर्त  
जलते रहने का  
दूसरों को उजाला देने का,  
बेचारा सूरज  
अवश्य होत होगा निढाल  
थककर बैठने का  
करता होगा प्रयास  
बिना जले बस कुछ पल रुके  
उसका मन बहुत बहुत चाहता होगा   
पर शापमुक्त होने का उपाय  
ऋषि से बताया न होगा,  
युग बीते, सदी बदली   
पर वह फ़र्ज़ से नही भटका  
 कभी अटका  
हमें जीवन और ज्योति दे रहा है  
अपना शाप जी रहा है।  
कभी-कभी किसी का शाप  
दूसरों का जीवन होता है।  

- जेन्नी शबनम (7. 10. 2017)  
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रविवार, 17 सितंबर 2017

559. कैसी ज़िन्दगी? (10 ताँका)

कैसी ज़िन्दगी?  
(10 ताँका)  

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1.  
हाल बेहाल  
मन में है मलाल  
कैसी ज़िन्दगी?  
जहाँ धूप न छाँव  
न तो अपना गाँव!  

2.  
ज़िन्दगी होती  
हरसिंगार फूल,  
रात खिलती  
सुबह झर जाती,  
ज़िन्दगी फूल होती!  

3.  
बोझिल मन  
भीड़ भरा जंगल  
ज़िन्दगी गुम,  
है छटपटाहट  
सर्वत्र कोलाहल!

4.  
दीवार गूँगी  
सारा भेद जानती,  
कैसे सुनाती?  
ज़िन्दगी है तमाशा  
दीवार जाने भाषा!

5.  
कैसी पहेली?  
ज़िन्दगी बीत रही  
बिना सहेली,  
कभी-कभी डरती  
ख़ामोशियाँ डरातीं !  

6.  
चलती रही  
उबड-खाबड़ में  
हठी ज़िन्दगी,  
ख़ुद में ही उलझी  
निराली ये ज़िन्दगी!  

7.  
फुफकारती  
नाग बन डराती  
बाधाएँ सभी,  
मगर रूकी नहीं,  
डरी नहीं, ज़िन्दगी!  

8.  
थम भी जाओ,  
ज़िन्दगी झुँझलाती  
और कितना?  
कोई मंज़िल नहीं  
फिर सफ़र कैसा?  

9.  
कैसा ये फ़र्ज़   
निभाती है ज़िन्दगी  
साँसों का क़र्ज़,  
गुस्साती है ज़िन्दगी  
जाने कैसा है मर्ज़!  

10.  
चीख़ती रही  
बिलबिलाती रही  
ज़िन्दगी ख़त्म,  
लहू बिखरा पड़ा  
बलि पे जश्न मना!  

- जेन्नी शबनम (17. 9. 2017)  

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शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

558. हिसाब-किताब के रिश्ते (तुकांत)

हिसाब-किताब के रिश्ते  

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दिल की बातों में ये हिसाब-किताब के रिश्ते  
परखते रहे कसौटी पर बेकाम के रिश्ते 

वक़्त के छलावे में जो ज़िन्दगी ने चाह की  
कतरा-कतरा बिखर गए ये मखमल-से रिश्ते   

दर्द की दीवारों पे हसीन लम्हे टँके थे  
गुलाब संग काँटों के ये बेमेल-से रिश्ते   

लड़खड़ाकर गिरते फिर थम-थम के उठते रहे  
जैसे समंदर की लहरें व साहिल के रिश्ते   

नाम की ख़्वाहिश ने जाने ये क्या कराया  
गुमनाम सही पर क्यों बदनाम हुए ये रिश्ते   

चाँदी के तारों से सिले जज़्बात के रिश्ते  
सुबह की ओस व आसमाँ के आँसू के रिश्ते   

किराए के मकाँ में रहके घर को हैं तरसे  
अपनों की आस में 'शब' ने ही निभाए रिश्ते   


- जेन्नी शबनम (8. 9. 2017)  
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शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

557. सूरज की पार्टी (11 बाल हाइकु) पुस्तक 93,94

सूरज की पार्टी  

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1.  
आम है आया  
सूरज की पार्टी में  
जश्न मनाया   

2.  
फलों का राजा  
शान से मुस्कुराता  
रंग बिरंगा   

3.  
चुभती गर्मी  
तरबूज़ का रस  
हरता गर्मी   

4.  
खीरा-ककड़ी  
लत्तर पे लटके  
गर्मी के दोस्त   

5.  
आम व लीची  
कौन हैं ज़्यादा मीठे  
करते रार   

6.  
मुस्कुराता है  
कँटीला अनानास  
बहुत ख़ास   

7.  
पानी से भरा  
कठोर नारियल  
बुझाता प्यास   

8.  
पेड़ से गिरा  
जामुन तरोताज़ा  
गर्मी का दोस्त   

9.  
मानो हो गेंद  
पीला-सा ख़रबूजा   
लुढ़का जाता   

10.  
धम्म से कूदा
अँखियाँ मटकाता  
आम का जोड़ा   

11.  
आम की टोली  
झुरमुट में छुपी  
गप्पें हाँकती

- जेन्नी शबनम (27. 8. 2017)  
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रविवार, 27 अगस्त 2017

556. बादल राजा (बरसात पर 10 हाइकु) पुस्तक 92, 93

बादल राजा   

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1.  
ओ मेघ राजा  
अब तो बरस जा  
भगा दे गर्मी   

2.  
बदली रानी  
झूम-झूम बरसी  
नाचती गाती   

3.  
हे वर्षा रानी  
क्यों करे मनमानी  
बरसा पानी   

4.  
नहीं बरसा  
दहाड़ता गरजा,  
बादल शेर   

5.  
काला बदरा  
मारा-मारा फिरता  
ठौर न पाता  

6.  
मेघ गरजा  
रवि भागके छुपा  
डर जो गया   

7.  
खिली धरती,  
रिमझिम बरसा  
बदरी काली   

8.  
ली अँगड़ाई  
सावन घटा छाई  
धरा मुस्काई   

9.  
बरसा नहीं  
मेघ को गुस्सा आया,  
क्रूर प्रकृति   

10.  
सुन्दर छवि  
आकाश पे उभरा  
मेघों ने रचा   

- जेन्नी शबनम (27. 8. 2017)  
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मंगलवार, 15 अगस्त 2017

555. कैसी आज़ादी पाई (स्वतंत्रता दिवस पर 4 हाइकु) पुस्तक - 91, 92

कैसी आज़ादी पाई  

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1.  
मन है क़ैदी,  
कैसी आज़ादी पाई?  
नहीं है भायी   

2.  
मन ग़ुलाम  
सर्वत्र कोहराम,  
देश आज़ाद   

3.  
मरता बच्चा  
मज़दूर, किसान,  
कैसी आज़ादी?  

4.  
हूक उठती,  
अपने ही देश में  
हम ग़ुलाम   

- जेन्नी शबनम (15. 8. 2017)  
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बुधवार, 9 अगस्त 2017

554. सँवार लूँ (क्षणिका)

सँवार लूँ

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मन चाहता है  
एक बोरी सपनों के बीज  
मन के मरुस्थल में छिड़क दूँ  
मनचाहे सपने उगा ज़िन्दगी सँवार लूँ।  

- जेन्नी शबनम (9. 8. 2017) 
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सोमवार, 7 अगस्त 2017

553. रिश्तों की डोर (राखी पर 10 हाइकु) पुस्तक - 90, 91

रिश्तों की डोर  

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1.  
हो गए दूर  
सम्बन्ध अनमोल  
बिके जो मोल।   

2.  
रक्षा का वादा  
याद दिलाए राखी  
बहन-भाई।   

3.  
नाता पक्का-सा  
भाई की कलाई में  
सूत कच्चा-सा।   

4.  
पवित्र धागा  
सिखाता है मर्यादा  
जोड़ता नाता। 

5.  
अपनापन  
अब भी है दिखता  
राखी का दिन।   

6.  
रिश्तों की डोर  
खोलती दरवाज़ा  
नेह का नाता।   

7.  
भाई-बहन  
भरोसे का बंधन  
अभिनंदन।   

8.  
ख़ूब खिलती  
चमचमाती राखी  
रक्षाबंधन।   

9.  
त्योहार आया  
भइया परदेशी  
बहना रोती।   

10.  
रक्षक भाई  
बहना है पराई  
राखी मिलाई।   

- जेन्नी शबनम (7. 8. 2017)
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सोमवार, 17 जुलाई 2017

552. मुल्कों की रीत है (तुकांत)

मुल्कों की रीत है  

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कैसा अजब सियासी खेल है, होती मात न जीत है
नफ़रत का कारोबार करना, हर मुल्कों की रीत है। 

मज़हब व भूख पर, टिका हुआ सारा दारोमदार है
ग़ैरों की चीख-कराह से, रचता ज़ेहादी गीत है।   

ज़ेहन में हिंसा भरा, मानव बना फौलादी मशीन  
दहशत की ये धुन बजाते, दानव का यह संगीत है।   

संग लड़े जंगे-आज़ादी, भाई-चारा याद नहीं  
एक-दूसरे को मार-मिटाना, बची इतनी प्रीत है  

हर इंसान में दौड़ता लाल लहू, कैसे करें फ़र्क  
यहाँ अपना पराया कोई नहीं, 'शब' का सब मीत है।   

- जेन्नी शबनम (17. 7. 2017)  
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शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

551. उदासी (क्षणिका)

उदासी  

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ज़बरन प्रेम ज़बरन रिश्ते  
ज़बरन साँसों की आवाजाही  
काश! कोई ज़बरन उदासी भी छीन ले!  

- जेन्नी शबनम (7. 7. 2017)  
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शनिवार, 1 जुलाई 2017

550. ज़िद (क्षणिका)

ज़िद

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एक मासूम सी ज़िद है-  
सूरज तुम छुप जाओ  
चाँद तुम जागते रहना  
मेरे सपनों को आज  
ज़मीं पर है उतरना। 

- जेन्नी शबनम (1. 7. 2017)
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शुक्रवार, 30 जून 2017

549. धरा बनी अलाव (गर्मी के 10 हाइकु) पुस्तक- 89, 90

धरा बनी अलाव  

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1.  
दोषी है कौन?  
धरा बनी अलाव,  
हमारा कर्म   

2.  
आग उगल  
रवि गर्व से बोला-  
सब झुलसो!  

3.  
रोते थे वृक्ष-  
'मत काटो हमको' 
अब भुगतो   

4.  
ये पेड़ हरे  
साँसों के रखवाले  
मत काटो रे 

5.  
बदली सोचे-  
आँखों में आँसू नहीं  
बरसूँ कैसे?  

6.  
बिन आँसू के  
आसमान है रोया,  
मेघ खो गए   

7.  
आग फेंकता  
उजाले का देवता  
रथ पे चला   

8.  
अब तो चेतो  
प्रकृति को बचा लो,  
नहीं तो मिटो   

9.  
कंठ सूखता  
नदी-पोखर सूखे  
क्या करे जीव?  

10.  
पेड़ व पक्षी  
प्यास से तड़पते  
लिपट रोते   

- जेन्नी शबनम (29. 6. 2017)
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