रविवार, 25 मई 2014

458. हादसा

हादसा

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हमारा मिलना 
हर बार एक हादसे में तब्दील हो जाता है 
हादसा, जिससे दूसरों का कुछ नहीं बिगड़ता 
सिर्फ़ हमारा-तुम्हारा बिगड़ता है  
क्योंकि, ये हादसे हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा हैं 
हमारे वजूद में शामिल 
दहकते शोलों की तरह 
जिनके जलने पर ही ज़िन्दगी चलती है  
अगर बुझ गए तो जीने का मज़ा चला जाएगा 
और बेमज़ा जीना तुम्हें भी तो पसंद नहीं  
फिर भी, तुम्हें साथी कहने का मन नहीं होता  
क्योंकि, इन हादसों में कई सारे वे क्षण भी आए थे 
जब अपने-अपने शब्द-वाण से
हम एक दूसरे की हत्या तक करने को आतुर थे 
अपनी ज़हरीली जिह्वा से  
एक दूसरे का दिल चीर देते थे  
हमारे दरम्यान कई क्षण ऐसे भी आए   
जब ख़ुद को मिटा देने का मन किया  
कई बार हमारा मिलना गहरे ज़ख़्म दे जाता था 
जिसका भरना कभी मुमकिन नहीं हुआ  
हम दुश्मन भी नहीं 
क्योंकि, कई बार अपनी साँसों से 
एक दूसरे की ज़िन्दगी को बचाया है हमने 
अब हमारा अपनापा भी ख़त्म है 
क्योंकि, मुझे इस बात से इंकार है कि हम प्रेम में है 
और तुम्हारा जबरन इसरार कि 
मैं मान लूँ     
''हम प्रेम में हैं और प्रेम में तो यह सब हो ही जाता है'' 
सच है 
हादसों के बिना, हमारा मिलना मुमकिन नहीं
कुछ और हादसों की हिम्मत, अब मुझमें नहीं 
अंततः
पुख्ता फ़ैसला चुपचाप किया है- 
''असंबद्धता ही मुनासिब है''   
अब न कोई जिरह होगी 
न कोई हादसा होगा। 

- जेन्नी शबनम (25. 5. 2014) 
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मंगलवार, 20 मई 2014

457. दुआ के बोल (दुआ पर 5 हाइकु) पुस्तक 56

दुआ के बोल

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1. 
फूले व फले
बगिया जीवन की  
जन-जन की। 

2.
दुआ के बोल 
ब्रह्माण्ड में गूँजते 
तभी लगते।  
  
3.
प्रेम जो फले 
अपनों के आशीष  
फूल-से झरें। 

4.
पाँव पखारे 
सुख-शान्ति का जल 
यही कामना। 

5.
फूल के शूल 
कहीं चुभ न जाए 
जी घबराए। 

- जेन्नी शबनम (13. 5. 2014)
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मंगलवार, 13 मई 2014

456. पैसा (15 हाइकु) पुस्तक 54-56

पैसा 

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1.
पैसे ने छीने
रिश्ते नए पुराने
पैसा बेदिल।

2.
पैसा गरजा
ग़ैर बने अपने
रिश्ता बरसा।

3.
पैसे की वर्षा
भावनाएँ घोलता
रिश्ता मिटता।

4.
पैसा कन्हैया
मानव है गोपियाँ
खेल दिखाता।

5.
पैसे का भूखा
भरपेट है खाता,
मरता भूखा।

6.
काठ है रिश्ता 
खोखला कर देता
पैसा दीमक।

7.
ताली पीटता
सबको है नचाता
पैसा घमंडी।

8.
पैसा अभागा
कोई नहीं अपना
नाचता रहा।

9.
पैसा है चंदा
रंग बदले काला
फिर भी भाता।

10.
मन की शांति
लूटकर ले गया
पैसा लुटेरा।

11.
मिला जो पड़ा
चींटियों ने झपटा
पैसा शहद।

12.
गुत्थम-गुत्था
इंसान और पैसा
विजयी पैसा।

13.
बने नशेड़ी
जिसने चखा नशा,
पैसा है नशा।

14.
पैसा ज़हर
सब चाहता खाना
हसीं असर

15.
नाच नचावे 
छन-छन छनके 
हाथ न पैर। (पैसा)
  
- जेन्नी शबनम (29. 4. 2014)
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रविवार, 11 मई 2014

455. अवसाद के क्षण (पुस्तक- नवधा)

अवसाद के क्षण

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अवसाद के क्षण 
वैसे ही लुढ़क जाते हैं 
जैसे कड़क धूप के बाद, शाम ढलती है
जैसे अमावास के बाद, चाँदनी खिलती है 
जैसे अविरल अश्रु के बहने के बाद 
मन में सहजता उतरती है। 
 
जीवन कठिन है 
मगर इतना भी नहीं कि जीते-जीते थक जाएँ 
और फिर ज्योतिष से 
ग्रहों को अपने पक्ष में करने के उपाय पूछें
या फिर सदा के लिए 
स्वयं को स्वयं में समाहित कर लें। 
 
अवसाद भटकाव की दुविधा नहीं 
न पलायन का मार्ग है 
अवसाद ठहरकर चिन्तन का क्षण है 
स्वयं को समझने का 
स्वयं के साथ रहने का अवसर है। 

हर अवसाद में
एक नए आनन्द की उत्पत्ति संभावित है
अतः जीवन का ध्येय  
अवसाद को जीकर आनन्द पाना है। 

-जेन्नी शबनम (11. 5. 2014)
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गुरुवार, 1 मई 2014

454. शासक (पुस्तक -78)

शासक

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इतनी क्रूरता, कैसे उपजती है तुममें?
कैसे रच देते हो, इतनी आसानी से चक्रव्यूह 
जहाँ तिलमिलाती हैं, विवशताएँ
और गूँजता है अट्टहास
जीत क्या यही है?
किसी को विवश कर
अधीनता स्थापित करना, अपना वर्चस्व दिखाना  
किसी को भय दिखाकर
प्रताड़ित करना, आधिपत्य जताना
और यह साबित करना कि 
तुम्हें जो मिला, तुम्हारी नियति है  
मुझे जो तुम दे रहे, मेरी नियति है 
मेरे ही कर्मों का प्रतिफल 
किसी जन्म की सज़ा है 
मैं निकृष्ट प्राणी  
जन्मों-जन्मो से, भाग्यहीन, शोषित  
जिसे ईश्वर ने संसार में लाया 
ताकि तुम, सुविधानुसार उपभोग करो
क्योंकि तुम शासक हो
सच है-
शासक होना ईश्वर का वरदान है 
शोषित होना ईश्वर का शाप!

- जेन्नी शबनम (1. 5. 2014)
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