विदा
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उम्र के बेहिसाब लम्हे
जाने कैसे ख़र्च हो गए
बदले में मिले ज़िन्दगी के छल
एकांत के अनेकों कठोर पल
जब न सुनने वाला कोई, न समझाने वाला कोई
न पास आने वाला, न दूर जाने वाला कोई
न संगी न साथी, न रिश्ते न रिश्तेदारी
अपनी नीरवता में ख़ुद के साथ
सिमटे हुए दोनों खुले हाथ
और यूँ धीरे-धीरे
विदा हो रही है ज़िन्दगी।
- जेन्नी शबनम (12. 8. 2020)
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