बुधवार, 13 अप्रैल 2011

232. ज़िद्दी हूँ

ज़िद्दी हूँ

*******

जाने किस सफ़र पर ज़िन्दगी चल पड़ी है
न मक़सद का पता न मंज़िल का ठिकाना है
अब तो रास्ते भी याद नहीं
किधर से आई थी किधर जाना है
बहुत दूर निकल गए तुम भी
इतना कि मेरी पुकार भी नहीं पहुँचती 
इस सच से वाक़िफ़ हूँ और समझती भी हूँ
साथ चलने के लिए तुम साथ चले ही कब थे
मान रखा मेरी ज़िद का तुमने
और कुछ दूर चल दिए थे साथ मेरे
क्या मानूँ?
तुम्हारा एहसान या फिर
महज़ मेरे लिए ज़रा-सी पीड़ा
नहीं-नहीं, कुछ नहीं
ऐसा कुछ न समझना
तुम्हारा एहसान मुझे दर्द देता है
प्रेम के बिना सफ़र नहीं गुज़रता है
तुम भी जानते हो और मैं भी
मेरे रास्ते तुमसे होकर ही गुज़रेंगे
भले रास्ते न मिले
या तुम अपना रास्ता बदल लो
पर मेरे इंतज़ार की इंतिहा देखना
मेरी ज़िद भी और मेरा जुनून भी
इंतज़ार रहेगा
एक बार फिर से
पूरे होशो हवास में तुम साथ चलो
सिर्फ़ मेरे साथ चलो 
जानती हूँ
वक़्त के साथ मैं भी अतीत हो जाऊँगी
या फिर वह
जिसे याद करना कोई मज़बूरी हो
धूल जमी तो होगी 
पर उन्हीं नज़रों से तुमको देखती रहूँगी
जिससे बचने के लिए
तुम्हारे सारे प्रयास अकसर विफल हो जाते रहे हैं 
उस एक पल में
जाने कितने सवाल उठेंगे तुममें
जब अतीत की यादें
तुम्हें कटघरे में खड़ा कर देंगी
कुसूर पूछेगी मेरा
और तुम बेशब्द ख़ुद से ही उलझते हुए
सूनी निगाहों से सोचोगे -
काश! वो वक़्त वापस आ जाता
एक बार फिर से सफ़र में मेरे साथ होती तुम
और हम एक ही सफ़र पर चलते
मंज़िल भी एक और रास्ते भी एक
जानते हो न
बीता वक़्त वापस नहीं आता
मुझे नहीं मालूम मेरी वापसी होगी या नहीं
या तुमसे कभी मिलूँगी या नहीं
पर इतना जानती हूँ
मैं बहुत ज़िद्दी हूँ!

- जेन्नी शबनम (13. 4. 2011)
______________________