सिंहनाद करो...
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व्यर्थ लगता है
शब्दों में समेटकर
हिम्मत में लपेटकर
अपनी संवेदनाओं को
अभिव्यक्त करना,
हम जिसे अपनी आजादी कहते हैं
हम जिसे अपना अधिकार मानते हैं
सुकून से दरवाजे के भीतर
देश की दुर्व्यवस्था पर
देश और सरकार को कोसते हैं
अपनी खुशनसीबी पर
अभिमान करते हैं कि
हम सकुशल हैं,
यह भ्रम जाने किस वक्त टूटे
जाने कब धड़धड़ाता हुआ आए
असंवेदनशीलता का कहर
और हमारे शरीर और आत्मा को
छिन्न-भिन्न कर जाए,
ज्ञानी-महात्मा कहते हैं
सब व्यर्थ है
जग मोह है माया है
क्षणभंगूर है
फिर तो व्यर्थ है हमारी सोच
व्यर्थ है हमारी अभिलाषाएँ
जो हो रहा है होने दो
नदी के साथ बहते जाओ
आजादी हमारा अधिकार नहीं
बस जीते जाओ जीते जाओ!
यही वक़्त है
खुद से अब साक्षात्कार करो
सारे कहर आत्मसात करो
या फिर सिंहनाद करो!
- जेन्नी शबनम (15. 8. 2018)
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