शनिवार, 23 मार्च 2013

394. आत्मा होती अमर (10 सेदोका)

आत्मा होती अमर (10 सेदोका)

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1.
छिड़ी है जंग 
सच झूठ के बीच 
किसकी होगी जीत ?
झूठ हारता  
भले देर-सबेर  
होता सच विजयी !  

2.
दिल बेजार 
रो-रो कर पूछता
क्यों बनी ये दुनिया ?
ऐसी दुनिया -
जहाँ नहीं अपना 
रोज़ तोड़े सपना !

3.
कुंठित सोच 
भयानक है रोग 
सर्वनाश की जड़,
खोखले होते 
मष्तिष्क के पुर्जे 
बदलाव कठिन !

4.
नश्वर नहीं
फिर भी है मरती 
टूट के बिखरती, 
हमारी आत्मा 
कहते धर्म-ज्ञानी -
आत्मा होती अमर !

5.
अपनी पीड़ा 
सदैव लगी छोटी,
गैरों की पीड़ा बड़ी,
खुद को भूल  
जी चाहता हर लूँ 
सारे जग की पीड़ा !

6.
फड़फड़ाते
पर कटे पक्षी-से
ख्वाहिशों के सम्बन्ध,
उड़ना चाहे  
पर उड़ न पाएँ  
नियत अनुबंध !

7.
नहीं विकल्प 
मंज़िल की डगर 
मगर लें संकल्प 
बहुत दूर 
विपरीत सफर 
न डिगेंगे कदम !

8.
एक पहेली 
बूझ-बूझ के हारी 
मगर अनजानी, 
ये जिंदगानी 
निरंतर चलती 
जैसे बहती नदी !

9.
संभावनाएँ
सफलता की सीढ़ी 
कई राह खोलतीं,
जीवित हों तो,
मरने मत देना 
संभावना जीवन ! 

10.
पुनरुद्धार 
अपनी सोच का हो
अपनी आत्मा का हो  
तभी तो होगा 
जीवन गतिमान 
मंज़िल भी आसान !

- जेन्नी शबनम (अगस्त 7, 2012)

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