वापस अपने घर...
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अरसे बाद
खुद के साथ
वक़्त बीत रहा है
यूँ लगता है
जैसे
बहुत दूर चलकर आए हैं
सदियों बाद
वापस अपने घर !
उफ़...
कितना कठिन था सफ़र
रास्ते में हज़ारों बंधन
कहीं कामनाओं का ज्वार भाटा
कहीं भावनाओं की अनदेखी दीवार
कहीं छलावे की चकाचौंध रौशनी
और इन सबसे
बहकता घबराता
बार-बार घायल होता मन
जो बार-बार हारता
लेकिन ज़िद पर अड़ा रहता
और हर बार नए सिरे से
सुकून तलाशता फिरता,
बहुत कठिन था
अडिग होना
इन सबसे पार जाना
उन कुंठाओं से बाहर निकलना
जो जन्म से ही विरासत में मिलता है
सारे बंधनों को तोड़ना
जिसने आत्मा को जकड़ रखा था
खुद को तलाशना
खुद को वापस लाना
खुद में ठहरना,
पर एक बार
पर एक बार
एक बड़ा हौसला
एक बड़ा फैसला
अंतर्द्वंद के विस्फोट का सामना
खुद को समझने का साहस
और फिर
हर भटकाव से मुक्ति
और फिर
हर भटकाव से मुक्ति
अंततः
अपने घर वापसी,
अब ज़रा-ज़रा-सी कसक
हल्की-हल्की-सी टीस
मगर कोई उद्विग्नता नहीं
कोई पछतावा नहीं
सब कुछ शांत स्थिर,
पर हाँ
इन सबमें
जीने को उम्र
और वक़्त
दोनों ही
हाथ से निकल गया !
- जेन्नी शबनम (28. 7. 2013)
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