रविवार, 28 जुलाई 2013

414. वापस अपने घर

वापस अपने घर

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अरसे बाद 
ख़ुद के साथ वक़्त बीत रहा है  
यूँ लगता है
जैसे बहुत दूर चलकर आए हैं
सदियों बाद वापस अपने घर।
उफ़!
कितना कठिन था सफ़र 
रास्ते में हज़ारों बंधन 
कहीं कामनाओं का ज्वार भाटा 
कहीं भावनाओं की अनदेखी दीवार 
कहीं छलावे की चकाचौंध रौशनी
और इन सबसे बहकता घबराता   
बार-बार घायल होता मन 
जो बार-बार हारता 
लेकिन ज़िद पर अड़ा रहता 
और हर बार नए सिरे से 
सुकून तलाशता फिरता। 
बहुत कठिन था अडिग होना 
इन सबसे पार जाना
उन कुंठाओं से बाहर निकलना
जो जन्म से ही विरासत में मिलता है 
सारे बंधनों को तोड़ना 
जिसने आत्मा को जकड़ रखा था 
ख़ुद को तलाशना  
ख़ुद को वापस लाना 
ख़ुद में ठहरना।
पर एक बार 
एक बड़ा हौसला, एक बड़ा फैसला 
अंतर्द्वान्द्व के विस्फोट का सामना  
ख़ुद को समझने का साहस
और फिर हर भटकाव से मुक्ति
अंततः अपने घर वापसी।
अब ज़रा-ज़रा-सी कसक 
हल्की-हल्की-सी टीस 
मगर कोई उद्विग्नता नहीं  
कोई पछतावा नहीं
सब कुछ शांत स्थिर।
पर हाँ 
इन सबमें 
जीने को उम्र और वक़्त 
दोनों ही हाथ से निकल गया।

- जेन्नी शबनम (28. 7. 2013)
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बुधवार, 24 जुलाई 2013

413. धूप (15 हाइकु) पुस्तक 39,40

धूप

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1.
सूर्य जो जला   
किसके आगे रोए  
ख़ुद ही आग। 

2.
घूमता रहा 
सारा दिन सूरज 
शाम को थका। 

3.
भुट्टे-सी पकी
सूरज की आग पे    
फ़सलें सभी।

4.
जा भाग जा तू!
जला देगी तुझको  
शहर की लू।

5.
झुलसा तन 
झुलस गई धरा 
जो सूर्य जला।

6.
जल-प्रपात 
सूर्य की भेंट चढ़े 
सूर्य शिकारी।

7.
धूप खींचता 
आसमान से दौड़ा,
सूरज घोड़ा।

8.
ठंडे हो जाओ 
हाहाकार है मचा 
सूर्य देवता।

9.
असह्य ताप 
धरती कर जोड़े- 
'मेघ बरसो!'

10.
माना सबने- 
सर्वशक्तिमान हो 
शोलों को रोको।

11.
ख़ुद भी जले  
धरा को भी जलाए  
प्रचण्ड सूर्य।

12.
हे सूर्य देव!
कर दो हमें माफ़  
गुस्सा न करो।

13.
आग उगली  
बादल जल गया 
सूरज दैत्य।

14.
झुलस गया 
अपने ही ताप से 
सूर्य बेचारा।

15.
धूप के ओले  
टप-टप टपके 
सूरज फेंके।

- जेन्नी शबनम (1. 6. 2013)
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गुरुवार, 18 जुलाई 2013

412. जादूगर

जादूगर

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ओ जादूगर!
तुम्हारा सबसे ख़ास
मेरा प्रिय जादू दिखाओ न!
जानती हूँ 
तुम्हारी काया जीर्ण हो चुकी है 
और अब मैं 
ज़िन्दगी और जादू को समझने लगी हूँ 
फिर भी मेरा मन है 
एक बार और तुम मेरे जादूगर बन जाओ 
और मैं तुम्हारे जादू में 
अपना रोना भूल 
एक आख़िरी बार खिल जाऊँ।
तुम्हें याद है 
जब तुम मेरे बालों से टॉफ़ी निकालकर  
मेरी हथेली पर रख देते थे 
मैं झट से खा लेती थी 
कहीं जादू की टॉफ़ी ग़ायब न हो जाए
कभी तुम मेरी जेब से  
कुछ सिक्के निकाल देते थे 
मैं हत्प्रभ 
झट मुट्ठी बंद कर लेती थी 
कहीं जादू के सिक्के ग़ायब न हो जाए 
और मैं ढेर सारे गुब्बारे न खरीद पाऊँ।
मेरे मन के ख़िलाफ़
जब भी कोई बात हो 
मैं रोने लगती और तुम पुचकारते हुए 
मेरी आँखें बंदकर जादू करते 
जाने क्या-क्या बोलते 
सुनकर हँसी आ ही जाती थी 
और मैं खिसियाकर तुम्हें मुक्के मारने लगती
तुम कहते- 
बिल्ली झपट्टा मारी 
बिल्ली झपट्टा मारी 
मैं कहती-
तुम चूहा हो 
तुम कहते-
तुम बिल्ली हो 
एक घमासान, फिर तुम्हारा जादू 
वही टॉफ़ी, वही सिक्के।
जानती हूँ 
तुम्हारा जादू, सिर्फ़ मेरे लिए था 
तुम सिर्फ़ मेरे जादूगर थे 
मेरी हँसी मेरी ख़ुशी 
यही तो था तुम्हारा जादू।
ओ जादूगर!
एक आख़िरी जादू दिखाओ न! 

- जेन्नी शबनम (18. 7. 2013)
(पिता की पुण्यतिथि)
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शनिवार, 13 जुलाई 2013

411. सन्नाटे के नाम ख़त (10 हाइकु) पुस्तक 38, 39

सन्नाटे के नाम ख़त (10 हाइकु)

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1.
सन्नाटा भागा
चुप्पी ने मौन तोड़ा, 
जाने क्या बोला।  

2.
कोई न आया 
पसरा है सन्नाटा 
मन अकेला।  

3.
किसे फुर्सत?
चुप्पी की बात सुने
चुप्पी समझे।  

4.
चुप्पी भीतर 
सन्नाटा है बाहर
खेलता खेल।  

5.
दूर देश में  
समंदर पार से 
चुप्पी है आई।   

6.
ख़त है आया 
सन्नाटे के नाम से, 
चुप्पी ने भेजा।   

7.
बड़ा डराता 
ये गहरा सन्नाटा 
ज्यों दैत्य काला।  

8.
चुप्पी को ओढ़    
हँसते ही रहना,  
दुनियादारी।  

9.
खिंचे सन्नाटे 
करते ढेरों बातें 
चुप-चुप-से।  

10.
क्या हुआ गुम?
क्यों हुए गुमसुम?
मन है मौन।  

- जेन्नी शबनम (21. 6. 2013)
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