रविवार, 30 दिसंबर 2018

598. वृद्ध जीवन (वृद्धावस्था पर 20 हाइकु) पुस्तक - 101-103

वृद्ध जीवन 

*******   

1.   
उम्र की साँझ   
बेहद डरावनी   
टूटती आस।   

2.   
अटकी साँस   
बुढ़ापे की थकान   
मन बेहाल।   

3.   
वृद्ध की कथा   
कोई न सुने व्यथा   
घर है भरा।   

4.   
दवा की भीड़   
वृद्ध मन अकेला   
टूटता नीड़।   

5.   
अकेलापन   
सबसे बड़ी पीर   
वृद्ध जीवन।   

6.   
उम्र जो हारी   
एक पेट है भारी   
सब अपने।   

7.
धन के नाते   
मन से हैं बेगाने   
वृद्ध बेचारे।   

8.   
वृद्ध से नाता   
अपनों ने था छोड़ा   
धन ने जोड़ा।   

9.   
बदले कौन   
मख़मली चादर   
बुढ़ापा मौन।   

10.   
बहता नीर   
यही जीवन रीत   
बुढ़ापा भारी।   

11.   
उम्र का चूल्हा   
आजीवन सुलगा   
अब बुझता।   

12.   
किससे कहें?   
जीवन-साथी छूटा   
ढेरों शिकवा।   

13.   
बुढ़ापा खोट   
अपने भी भागते   
कोई न ओट।   

14.   
वृद्ध की आस   
शायद कोई आए   
टूटती साँस।   

15.   
ग़म का साया   
बुज़ुर्ग का अपना   
यही है सच।   

16.   
जीवन खिले   
बुज़ुर्गों के आशीष   
ख़ूब जो मिले।   

17.   
टूटा सपना   
कौन सुने दुखड़ा   
वृद्ध अकेला।   

18.   
वक़्त ने कहा-   
याद करो जवानी   
भूलें अपनी।   

19.   
वक़्त है लौटा   
बुज़ुर्ग का सपना   
सब हैं साथ।   

20.
वृद्ध की लाठी
बस गया विदेश
भूला वो माटी। 

- जेन्नी शबनम (24. 12. 2018)
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मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

597. बातें (क्षणिका)

बातें 

*******   

रात के अँधेरे में ढेरों बातें करती हूँ 
जानती हूँ मेरे साथ 
तुम कहीं नहीं थे, तुम कभी नहीं थे 
पर सोचती रहती हूँ- तुम सुन रहे हो 
और मैं ख़ुद से बातें करती हूँ।   

- जेन्नी शबनम (25. 12. 2018)   
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बुधवार, 19 दिसंबर 2018

596. दुःख (दुःख पर 10 हाइकु) पुस्तक 100, 101

दुःख (10 हाइकु)   

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1.   
दुःख का पारा 
सातवें आसमाँ पे   
मन झुलसा।    

2.   
दुःख का लड्डु   
रोज़-रोज़ यूँ खाना   
बड़ा ही भारी।    

3.   
दुःख की नदी 
बेखटके दौड़ती   
बे रोक-टोक।    

4.   
साथी है दुःख   
साथ है हरदम 
छूटे न दम।    

5.   
दुःख की वेला 
कभी तो गुज़रेगी   
मन में आस।    

6.   
दुःख की रोटी 
भरपेट है खाई   
फिर भी बची।    

7.   
दुःख अतिथि 
जाने की नहीं तिथि   
बड़ा बेहया।    

8.   
दुःख की माला 
काश ये टूट जाती   
सुकून पाती।    

9.   
मस्त झूमता 
बड़ा ही मतवाला   
दुःख है योगी।    

- जेन्नी शबनम (28. 9. 2018)   
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बुधवार, 5 दिसंबर 2018

595. अर्थ ढूँढ़ता (10 हाइकु) पुस्तक -99, 100

अर्थ ढूँढ़ता 

*******   

1.   
मन सोचता-   
जीवन होता है क्या?   
अर्थ ढूँढता।   

2.   
बसंत आया   
रिश्तों में रंग भरा   
मिठास लाया।   

3.   
याद-चाशनी   
सुख की है मिठाई   
मन को भायी।   

4.   
फ़िक्र व चिन्ता   
बना गए दुश्मन,   
रोगी है काया।   

5.   
वक़्त की धूप   
शोला बन बरसी   
झुलसा मन।   

6.   
सुख व दुख   
यादों का झुरमुट   
अटका मन।   

7.   
ख़ामोश बही   
गुमनाम हवाएँ   
ज्यों मेरा मन।   

8.   
मैं सूर्यमुखी   
तुम्हें ही निहारती   
तुम सूरज।   

9.   
मेरी वेदना   
सर टिकाए पड़ी   
मौन की छाती।   

10.   
छटपटाती   
साँसों को तरसती   
बीमार हवा।   

- जेन्नी शबनम (23. 11. 2018)   
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गुरुवार, 22 नवंबर 2018

594. रूठना (क्षणिका)

रूठना   

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जब भी रूठी   
खो देने के भय से ख़ुद ही मान गई   
रूठने की आदत तो बिदाई के वक्त   
खोंइचा से निकाल नइहर छोड़ आई। 

- जेन्नी शबनम (22. 11. 18)   
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शनिवार, 17 नवंबर 2018

593. लौट जाऊँगी

लौट जाऊँगी  

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कब कहाँ खो आई ख़ुद को   
कब से तलाश रही हूँ ख़ुद को   
बात-बात पर कभी रूठती थी   
अब रूठूँ तो मनाएगा कौन   
बार-बार पुकारेगा कौन   
माँ की पुकार में दुलार का नाम   
अब भी आँखों में ला देता नमी   
ठहर गई है मन में कुछ कमी   
अब तो यूँ जैसे मैं बेनाम हो गई   
अपने रिश्तों के परवान चढ़ गई   
कोई पुकारे तो यूँ महसूस होता है   
गर्म सीसे का ग़ुब्बारा ज़ोर से मारा है   
कभी मेरी हँसी और ठहाके गूँजते थे   
अब ख़ुद से ही बतियाते मौसम बदलते हैं   
टी. वी. की शौक़ीन कृषि दर्शन तक देखती थी   
अब टी. वी. तो चलता है मगर क्या देखा याद नहीं   
वक़्त ने एक-एककर मुझसे मुझको छीन लिया   
ख़ुद को तलाशते-तलाशते वक़्त यूँ ही गुज़र गया   
सारे शिकवे शिकायत गंगा से कह आती हूँ   
आँखों का पानी सिर्फ़ गंगा ही देखती है   
वह भी ढाढ़स बँधाने बदली को भेज देती है   
मेरी आँखों-सी बदली भी जब तब बरसती है   
वो मंज़र जाने कब आएगा   
वो सुखद पल जाने कब आएगा   
सारे नातों से घिरी हुई मैं   
एक झूठ के चादर से लिपटी मैं   
सबको ख़ुशामदीद कह जाऊँगी   
तन्हा सफ़र पर लौट जाऊँगी   
खो आई थी कभी ख़ुद को   
ख़ुद से मिलकर   
ख़ुद के साथ चली जाऊँगी   
ख़ुद के साथ लौट जाऊँगी। 

- जेन्नी शबनम (16. 11. 2018)   
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बुधवार, 7 नवंबर 2018

592. रंगीली दिवाली (दिवाली पर 10 हाइकु) पुस्तक 98,99

रंगीली दिवाली

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1.
छबीला दीया
ये रंगीली दीवाली
बिखेरे छटा। 

2.
साँझ के दीप
अँधेरे से लड़ते
वीर सिपाही।

3.
दीये नाचते
ये गुलाबी मौसम
ख़ूब सुहाते। 

4.
झूमती धरा
अमावस की रात
ख़ूब सुहाती। 

5.
दीप-शिखाएँ
जगमग चमके
दीप मालाएँ। 

6.
धूम धड़ाका
बेज़बान है डरा
चीखे पटाखा। 

7.
ज्योति फैलाता
नन्हा बना सूरज
दिवाली रात। 

8.
धरा ने ओढ़ी
जुगनुओं की चुन्नी
रात है खिली। 

9.
सत्य की जीत
दीवाली देती सीख
समझो जरा। 

10.
पेट है भूखा
ग़रीब की कुटिया,
कैसी दिवाली?

- जेन्ना शबनम (7. 11. 2018)
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बुधवार, 24 अक्तूबर 2018

591. चाँद की पूरनमासी

चाँद की पूरनमासी

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चाँद तेरे रूप में अब किसको निहारूँ?   
वो जो बचपन में दूर का खिलौना था   
या फिर सफ़ेद बालों वाली बुढ़िया 
जो चरखे से रूई कातती रहती थी 
या फिर वो साथी जिससे बतकही करते हुए 
न जाने कितनी पूरनमासी की रातें बीती थीं 
इश्क़ के जाने कितने किस्से गढ़े गए थे 
जीवन के फ़लसफ़े जवान हुए थे 
किस्से कहानियों से तुम्हें निकालकर 
अपने वजूद में शामिलकर 
जाने कितना इतराया करती थी 
कितने सपनों को गुनती रहती थी 
अब यह सब बीते जीवन का हिस्सा-सा लगता है 
सीखों और अनुभवों का बोध कथा-सा लगता है 
हर पूरनमासी की रात जब तुम खिलखिलाओगे 
अपने रूप पर इठलाओगे 
मेरी बतकही अब मत सुनना 
मेरी विनती सुन लेना 
धरती पर चुपके से उतर जाना 
अँधेरे घरों में उजाला भर देना 
हो सके तो गोल-गोल रोटी बन जाना 
भूखों को एक-एक टुकड़ा खिला जाना 
ऐ चाँद, अब तुमसे अपना नाता बदलती हूँ 
तुम्हें अपना गुरू मान 
तुममें अपने गुरू का रूप मढ़ देती हूँ 
मुझे जो पाठ सिखाया जीवन का 
जग को भी सिखला देना 
हर पूरनमासी को आकर 
यूँ ही उजाला कर जाना।    

- जेन्नी शबनम (24. 10. 2018)
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रविवार, 14 अक्तूबर 2018

590. वर्षा (5 ताँका)

वर्षा (ताँका)   

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1.   
वर्षा की बूँदें   
उछलती-गिरती   
ठौर न पाती   
मौसम बरसाती   
माटी को तलाशती।   

2.   
ओ रे बदरा   
इतना क्यों बरसे   
सब डरते   
अन्न-पानी दूभर   
मन रोए जीभर।   

3.   
मेघ दानव   
निगल गया खेत,   
आया अकाल   
लहू से लथपथ   
खेत व खलिहान।   

4.   
बरखा रानी   
झम-झम बरसी   
मस्ती में गाती   
खिल उठा है मन   
नाचता उपवन।   

5.   
प्यासी धरती   
अमृत है चखती   
सोंधी-सी खूश्बू   
मन को लुभाती   
बरखा तू है रानी।   

- जेन्नी शबनम (9. 9. 2018)   

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सोमवार, 8 अक्तूबर 2018

589. अनुभूतियाँ (क्षणिका)

अनुभूतियाँ   

*******   

कुछ अनुभूतियाँ, आकाश के माथे का चुम्बन है   
कुछ अनुभूतियाँ, सूरज की ऊर्जा का आलिंगन है   
हर चाहना हर कामना, अद्भूत अनोखा अँसुवन है   
न क्षीण न स्थाई, मगर ये भाव सहज सुहाना बंधन है।   

- जेन्नी शबनम (8. 10. 2018)   
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मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

588. बापू (चोका - 9)

बापू (चोका)   

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जन्म तुम्हारा   
सौभाग्य है हमारा   
तुमने दिया   
जग को नया ज्ञान   
हारे-पिछड़े   
वक्त ने जो थे मारे   
दुख उनका   
सह न पाए तुम   
तुमने किया   
अहिंसात्मक जंग   
तुमने कहा -   
सत्य और अहिंसा   
सच्चे विचार   
स्वयं पर विजय   
यही था बस   
तुम्हारा हथियार   
तुम महान   
लाए नया विहान   
दूर भगाया   
विदेशी सरमाया   
मगर देखो   
तुम्हारा उपकार   
भूला संसार   
छल से किया वार   
दिया आघात   
जो अपने तुम्हारे   
सीना छलनी   
हुई लहूलुहान   
तुम्हारी भूमि   
प्रण पखेरू उड़े   
तुम निष्प्राण   
जग में कोहराम   
ओह! हे राम!   
यह क्या हुआ राम!   
हिंसा से हारा   
अहिंसा का पुजारी   
तुम तो चले गए   
अच्छा ही हुआ   
न देखा यह सब   
देख न पाते   
तुम्हारी कर्मभूमि   
खंडों में टूटी   
तुम्हारा बलिदान   
हुआ है व्यर्थ   
तुम्हारे अपने ही   
छलते रहे   
खंजर भोंक रहे   
अपनों को ही   
तुम्हारी शिक्षा भूल   
तुम्हारा दर्शन   
तुम्हारे विचार त्याग   
घिनौने कार्य   
तुम्हारे नाम पर   
ओह! दुःखद!   
हम नहीं भूलेंगे   
अपनाएँगे   
तुमसे सीखा पाठ   
नमन बापू   
पूजनीय हो तुम   
अमर रहो तुम!   

- जेन्नी शबनम (2. 10. 2018)

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शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

587. मीठी-सी बोली (हिन्दी दिवस पर 10 हाइकु) पुस्तक - 97)

मीठी-सी बोली 

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1.   
मीठी-सी बोली   
मातृभाषा हमारी   
ज्यों मिश्री घुली।    

2.   
हिन्दी है रोती   
बेबस व लाचार   
बेघर होती।    

3.   
प्यार चाहती   
अपमानित हिन्दी   
दुखड़ा रोती।    

4.   
अंग्रेज़ी भाषा   
सर चढ़के बोले   
हिन्दी ग़ुलाम।    

5.   
विजय-गीत   
कभी गाएगी हिन्दी   
आस न टूटी।    

6.   
भाषा लड़ती   
अंग्रेज़ी और हिन्दी   
कोई न जीती।    

7.   
जन्मी दो जात   
अंग्रेज़ी और हिन्दी   
भारत देश।    

8.   
मन की पीर   
किससे कहे हिन्दी   
है बेवतन।    

9.   
हिन्दी से नाता   
नौकरी मिले कैसे   
बड़ी है बाधा।    

10.   
हमारी हिन्दी   
पहचान मिलेगी   
आस में बैठी।    

- जेन्नी शबनम (14. 9. 2018)   
(हिन्दी दिवस)
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सोमवार, 10 सितंबर 2018

586. चाँद रोज़ जलता है (तुकांत)

चाँद रोज़ जलता है   

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तूने ज़ख़्म दिया तूने कूरेदा है   
अब मत कहना क़हर कैसा दिखता है।   

राख में चिंगारी तूने ही दबाई   
अब देख तेरा घर ख़ुद कैसे जलता है।   

तू हँसता है करके बरबादी ग़ैरों की   
ग़ुनाह का हिसाब ख़ुदा रखता है।   

पैसे के परों से तू कब तक उड़ेगा   
तेज़ बारिशों में काग़ज़ कब टिकता है।   

तू न माने 'शब' के दिल को सूरज जाने   
उसके कहे से चाँद रोज़ जलता है।   

- जेन्नी शबनम (10. 9. 2018)   
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शनिवार, 1 सितंबर 2018

585. फ़ॉर्मूला (पुस्तक 65)

फ़ॉर्मूला   

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मत पूछो ऐसे सवाल   
जिसके जवाब से तुम अपरिचित हो   
तुम स्त्री-से नहीं हो   
समझ न सकोगे स्त्री के जवाब   
तुम समझ न पाओगे, स्त्री के जवाब में   
जो मुस्कुराहट है, जो आँसू है   
आख़िर क्यों है,   
पुरूष के जीवन का गणित और विज्ञान   
सीधा और सहज है   
जिसका एक निर्धारित फ़ॉर्मूला है   
मगर स्त्रियों के जीवन का गणित और विज्ञान   
बिलकुल उलट है   
बिना किसी तर्क का   
बिना किसी फ़ॉर्मूले का,   
उनके आँसुओं के ढेरों विज्ञान हैं    
उनकी मुस्कुराहटों के ढेरों गणित हैं   
माँ, पत्नी, पुत्री या प्रेमिका   
किसी का भी जवाब तुम नहीं समझ सकोगे   
क्योंकि उनके जवाब में अपना फ़ॉर्मूला फिट करोगे,   
तुम्हारे सवाल और जवाब, दोनों सरल हैं   
पर स्त्री का मन, देवताओं के भी समझ से परे है   
तुम तो महज़ मानव हो   
छोड़ दो इन बातों को   
मत विश्लेषण करो स्त्रियों का   
समय और समझ से दूर   
एक अलग दुनिया है स्त्रियों की   
जहाँ किसी का प्रवेश प्रतिबंधित नहीं, न ही वर्जित है   
परन्तु शर्त एक ही है   
तुम महज़ मानव नहीं, इंसान बनकर प्रवेश करो   
फिर तुम भी जान जाओगे   
स्त्रियों का गणित   
स्त्रियों का विज्ञान   
स्त्रियों के जीवन का फ़ॉर्मूला   
फिर सारे सवाल मिट जाएँगे   
और जवाब तुम्हें मिल जाएगा।   

- जेन्नी शबनम (1. 9. 2018)   
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मंगलवार, 28 अगस्त 2018

584. कम्फ़र्ट ज़ोन

कम्फ़र्ट ज़ोन   

***   

कम्फ़र्ट ज़ोन के अन्दर    
तमाम सुविधाओं के बीच   
तमाम विडम्बनाओं के बीच   
सुख का मुखौटा ओढ़े   
शनै-शनै बीत जाता है रसहीन जीवन। 
   
हासिल होता है महज़    
रोटी, कपड़ा, मकान   
बेरंग मौसम और रिश्तों की भरमार   
कम्फर्ट ज़ोन के अन्दर    
नहीं होती है कोई मंज़िल    
अगर है भी तो परायी है मंज़िल।
   
कम्फर्ट ज़ोन से बाहर   
अथाह परेशानियाँ   
मगर असीम संभावनाएँ    
अनेक पराजय मगर स्व-अनुभव   
अबूझ डगर मगर रंगीन मौसम   
असह्य संग्राम मगर अक्षुण्ण आशाएँ   
अपरिचित दुनिया मगर बेपनाह मुहब्बत   
अँधेरी राहें मगर स्पष्ट मंज़िल।
   
बेहद कठिन है फ़ैसला लेना   
क्या उचित है? 
अपनी मंज़िल या कम्फर्ट ज़ोन।   

- जेन्नी शबनम (28. 8. 2018)   
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शनिवार, 18 अगस्त 2018

583. खिड़की स्तब्ध है

खिड़की स्तब्ध है

*******   

खिड़की, महज़ एक खिड़की नहीं   
वह एक एहसास है, संभावना है   
भीतर और बाहर के बीच का भेद   
वह बख़ूबी जानती है   
इस पार छुपा हुआ संसार है   
जहाँ की आवोहवा मौन है   
उस पार विस्तृत संसार है   
जहाँ बहुत कुछ मनभावन है   
खिड़की असमंजस में है   
खिड़की सशंकित है   
कैसे पाट सकेगी   
कैसे भाँप सकेगी   
दोनों संसार को   
एक जानदार है   
एक बेजान है,   
खिड़की स्तब्ध है!   

- जेन्नी शबनम (18. 8. 2018)
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बुधवार, 15 अगस्त 2018

582. सिंहनाद करो

सिंहनाद करो   

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व्यर्थ लगता है   
शब्दों में समेटकर 
हिम्मत में लपेटकर 
अपनी संवेदनाओं को 
अभिव्यक्त करना, 
हम जिसे अपनी आज़ादी कहते हैं 
हम जिसे अपना अधिकार मानते हैं 
सुकून से दरवाज़े के भीतर 
देश की दुर्व्यवस्था पर 
देश और सरकार को कोसते हैं 
अपनी ख़ुशनसीबी पर 
अभिमान करते हैं कि 
हम सकुशल हैं, 
यह भ्रम जाने किस वक़्त टूटे   
असंवेदनशीलता का क़हर   
जाने कब धड़धड़ाता हुआ आए   
हमारे शरीर और आत्मा को छिन्न-भिन्न कर जाए, 
ज्ञानी-महात्मा कहते हैं-  
सब व्यर्थ है 
जग मोह है माया है 
क्षणभंगूर है,  
फिर तो व्यर्थ है हमारी सोच 
व्यर्थ है हमारी अभिलाषाएँ 
जो हो रहा है होने दो 
नदी के साथ बहते जाओ 
आज़ादी हमारा अधिकार नहीं 
बस जीते जाओ जीते जाओ।    
यही वक़्त है   
ख़ुद से अब साक्षात्कार करो 
सारे क़हर आत्मसात करो 
या फिर सिंहनाद करो।   

- जेन्नी शबनम (15. 8. 2018)   
(स्वतंत्रता दिवस)
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रविवार, 5 अगस्त 2018

581. अनछुई-सी नज़्म (क्षणिका)

अनछुई-सी नज़्म   

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कुछ कहो कि सन्नाटा भाग जाए   
चुप्पियों को लाज आ जाए   
अँधेरों की तक़दीर में भर दो रोशनाई से रंग   
कि छप जाए रंगों भरी ग़ज़ल   
और सदके में झुक जाए मेरी अनछुई-सी नज़्म।     

- जेन्नी शबनम (5. 8. 2018)
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शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

580. गुमसुम प्रकृति (प्रकृति पर 10 सेदोका)

गुमसुम प्रकृति
(प्रकृति पर 10 सेदोका)   

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1.   
अपनी व्यथा   
गुमसुम प्रकृति   
किससे वो कहती   
बेपरवाह   
कौन समझे दर्द   
सब स्वयं में व्यस्त।   

2.   
वन, पर्वत   
सूरज, नदी, पवन   
सब हुए बेहाल   
लड़खड़ाती   
साँसें सबकी डरी   
प्रकृति है लाचार।   

3.   
कौन है दोषी?   
काट दिए हैं वन   
उगा कंक्रीट-वन   
मानव दोषी   
मगर है कहता -   
प्रकृति अपराधी।   

4.   
दोषारोपण   
जग की यही रीत   
कोई न जाने प्रीत   
प्रकृति तन्हा   
किस-किस से लड़े   
कैसे ज़खम सिले।   

5.   
नदियाँ प्यासी   
दुनिया ने छीनी है   
उसका मीठा पानी,   
करो विचार   
प्रकृति है लाचार   
कैसे बुझाए प्यास।   

6.   
बाँझ निगोड़ी   
कुम्हलाई धरती   
नि:संतान मरती   
सूखा व बाढ़   
प्रकृति का प्रकोप   
धरा बेचारी।   

7.   
सब रोएँगे   
साँसें जब घुटेंगी   
प्रकृति भी रोएगी,   
वक्त है अभी   
प्रकृति को बचा लो   
दुनिया को बसा लो।   

8.   
विषैले नाग   
ये कल कारखाना   
ज़हर उगलते   
साँसें उखड़ी   
ज़हर पी-पी कर   
प्रकृति है मरती।   

9.   
लहूलुहान   
खेत व खलिहान   
माँगता बलिदान   
रक्त पिपासु   
खुद मानव बना   
धरा का खून पिया।   

10.   
प्यासी नदियाँ   
प्यासी तड़पे धरा   
प्रकृति भी है प्यासी,   
छाई उदासी,   
अभिमानी मानव   
विध्वंस को आतूर।   

- जेन्नी शबनम (23. 5. 2018)

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रविवार, 22 जुलाई 2018

579. तपता ये जीवन (10 ताँका)

तपता ये जीवन 
(10 ताँका)   

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1.   
अँजुरी भर   
सुख की छाँव मिली   
वह भी छूटी   
बच गया है अब   
तपता ये जीवन।   

2.   
किसे पुकारूँ   
सुनसान जीवन   
फैला सन्नाटा,   
आवाज घुट गई   
मन की मौत हुई।   

3.   
घरौंदा बसा   
एक-एक तिनका   
मुश्किल जुड़ा,   
हर रिश्ता विफल   
ये मन असफल।   

4.   
क्यों नहीं बनी   
किस्मत की लकीरें   
मन है रोता,   
पग-पग पे काँटे   
आजीवन चुभते।   

5.   
सावन आया   
पतझर-सा मन   
नहीं हर्षाया,   
काश! जीवन होता   
गुलमोहर-गाछ।   

6.   
नहीं विवाद   
मालूम है, जीवन   
क्षणभंगूर   
कैसे न दिखे स्वप्न   
मन नहीं विपन्न।   

7.   
हवा के संग   
उड़ता ही रहता   
मन-तितली   
मुर्झाए सभी फूल   
कहीं मिला न ठौर।   

8.   
तड़प रहा   
प्रेम की चाहत में   
मीन-सा मन,   
प्रेम लुप्त हुआ, ज्यों   
अमावस का चाँद।   

9.   
जो न मिलता   
सिरफिरा ये मन   
वही चाहता   
हाथ पैर मारता   
अंतत: हार जाता।   

10.   
स्वप्न-संसार   
मन पहरेदार   
टोकता रहा,   
जीवन से खेलता 
दिमाग अलबेला।   

- जेन्नी शबनम (25. 5. 2018) 
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